बाल कहानी : नीलू और निशी
जाम-कच्छार से होकर गब्दीनाला बहता था। नाले के किनारे तरह-तरह के बड़े-बड़े वृक्ष थे। हर वृक्ष पर किसी न किसी पक्षी का निवास था। एक विशाल अर्जुन वृक्ष पर नीलकंठ पक्षी- नीलू और निशी रहते थे। दोनों अपने दाम्पत्य जीवन से बहुत खुश थे। उनमें कभी मन-मुटाव नहीं हुआ। नीलू और निशी की जोड़ी पूरे जाम-कच्छार की पसंद थी।
निशी पहली बार माँ बनी थी। बड़े प्यारे चार बच्चे थे उनके। मम्मी-पापा बनने की प्रसन्नता दोनों के चेहरे पर झलकती थी। वे बच्चों का खूब केयर करते थे। दोनों अपना अधिकांश समय बच्चों के ही साथ बिताते थे। बच्चे भी बड़े प्रसन्न थे। नीलू और निशी अपने स्वस्थ व बढ़ते हुए बच्चों को देख फुले नहीं समाते थे।
नीलू और निशी दोनों हमेशा घर पर रहते थे। एक-दूसरे से बच्चों के बारे में ही बतियाते रहते थे। बच्चों के जन्म से पहले उन्हें भोजन की तलाश में जाना होता था तो वे घर से हमेशा एक साथ ही निकलते। पर इस समय नीलू को अकेला जाना पड़ता था। घर से निकलते वक्त नीलू निशी से कहा करता था- ” बच्चों को छोड़कर कहीं मत जाना निशी। दिन भर धूर्त कालू कौआ और गिट्टू गिद्ध मँडराते रहते हैं। रात में घुघ्घू उल्लू का भय बना रहता है। ” फिर निशी का जवाब होता- हाँ जी, मैं भी जानती हूँ। पर तुम्हारे अकेले जाने से मुझे डर लगा रहता है कि कहीं तुम किसी खतरे में न पड़ जाओ। हम दोनों एक साथ चलते हैं, तब की बात अलग होती है। मन में तरह-तरह की शंकाएँ आती हैं जी। ” इस तरह नीलू और निशी के हृदय में एक-दूसरे के प्रति अगाध प्रेम था।
नीलू और निशी को अपने इन बच्चों को देख कभी अपने बचपन के खुशी के दिन याद आ जाते, तो कभी संकट के पल। पर इस समय वे संकट के पल को भूल जाना ही उचित समझते थे। मजे की बात यह थी कि उन्होंने अपने बच्चों का एक से बढ़कर नाम रखा था- सुम्मी, प्रियू, बिट्टू और टोनी। उनकी अच्छी परवरिश करने में कोई कसर नहीं छोडा़ था नीलू और निशी ने। समय भी बीत रहा था।
एक दिन की बात है। बज्जू बाज आकाश में उड़ रहा था। वह भोजन की तलाश में था। बज्जू की दुष्टता न केवल जाम कच्छार ; वरन् आसपास के समस्त पक्षी-निवास क्षेत्र में चर्चित थी। उड़ते-उड़ते वह अर्जुन पेड़ के पास आ गया। तभी उसकी नजर नीलू व निशी के नवनिर्मित घोंसले पर पड़ी। उसे घोंसले के अंदर किसी न किसी के रहने की भनक लग गयी। मन गद-गद हो गया। नीचे उतरने लगा।
सच में इस समय निशी बच्चों के साथ घोंसले के अंदर थी। नीलू अपने घर से कुछ ही दूरी पर कसही पेड़ पर बैठा था। वह अपने मित्र पप्पू पंडूक का इंतजार कर रहा था। उसे छोटे बच्चों के स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी लेनी थी। तभी उसने बज्जू को अपने घोंसले की ओर आते देख लिया। उसे बज्जू का इरादा नेक नहीं लगा। फौरन अपने घोंसले की ओर उड़ान भरी।
बज्जू बाज ने भी नीलू को देख लिया। उसकी खुशी दुगुनी हो गयी। उसे लगा कि चोंच भी फूल, पंजे भी फूल। भगवान जब देता है तो छप्पड़ फाड़ कर देता है। पर बज्जू नीलू के घोंसले को नुकसान पहुँचाता, इससे पहले नीलू बज्जू के आड़े आ गया। उसके नजदीक जाकर बोला- ” बज्जू ! तुम मेरे घर की ओर बिल्कुल नहीं जाना। मेरी पत्नी और बच्चे घर पर हैं। वैसे भी तुम्हें हमसे कोई काम नहीं है; और न हिं हमें तुमसे। घर तक बिल्कुल ही नहीं जाना। जो कुछ भी बात है, यहीं पर मुझसे कर लो। “
बज्जू पंख फड़फड़ाते हुए बोला- ” अब तुम मिल गये, तो फिर मुझे तुम्हारे घर तक जाने की जरूरत ही नहीं है। आज तुम ही मेरा भोजन बन जाओ। यह तो अच्छा ही हुआ कि तुम स्वयं मेरे पास आ गये। ”
बज्जू की बातें सुन साहस जुटाते हुए नीलू बोला- ” तुम मुझे छू कर तो देखो। मैंने भी तुम्हें अपनी नानी याद नहीं दिलाई, तो मेरा नाम नीलू नीलकंठ नहीं; समझे ? ” फिर वह बज्जू को यह सोचकर उड़ते हुए अपने घर से दूर ले जाना चाहता था कि कहीं बज्जू बाज की आने की खबर निशी व बच्चों को पता न चले। वह अपने परिवार को संकट में पड़ने नहीं देना चाहता था। वहाँ से वह उड़ने लगा। आगे-आगे नीलू और पीछे-पीछे बज्जू। जब नीलू आश्वस्त हो गया कि वे दोनों घोंसले से बहुत दूर निकल चुके हैं, तब वह एक सेमल पेड़ पर जाकर बैठ गया। बज्जू भी उसी सेमल पर जा बैठा।
फिर बज्जू ने चोंच और पंजे से नीलू पर वार करना शुरू कर दिया। नीलू के पलटवार में भी कोई कमी नहीं थी। दोनों लड़ते-झगड़ते कभी टहनियों में उलझ जाते, तो कभी पेड़ से जमीन पर गिर जाते। देखते ही देखते दोनों लहुलुहान हो गये। चोंच और पंजे तक छिल गये। बज्जू बाज सोचने लगा कि पहली बार अपने बराबर वाले से उसका टक्कर हुआ है। उसे नहीं लगा था कि एक नीलू नीलकंठ के लिए उसे इतना खून-पसीना बहाना पड़ेगा। उसे दिन में तारे नजर आने लगे।
नीलू भी पीछे हटने का नाम नहीं ले रहा था, पर पस्त हो गया था। वह यह भी जानता था कि बज्जू बाज से उसकी हार निश्चित है। पर उसके मन में एक ही बात दृढ़ थी कि बिना लड़े हार मानना बुजदिली है। पीछे हटना भी मरना ही है। इस दुष्ट को पता चले कि किसी ने उसे टक्कर दिया। इसे अपनी दुष्टता के परिणाम से अवगत होना चाहिए। किसी निरीह परिन्दे पर हमला करने से पहले दस बार सोचेगा। इस तरह दोनों बहुत देर तक लड़ते ही रहे।
उसी समय नन्हे मनु बया ने बज्जू और नीलू को झगड़ते देख लिया। तुरंत उसने सिवनी अमराई जाकर रानी कोयल को बताया- ” रानी दीदी… रानी दीदी ! बज्जू और नीलू अंकल दोनों खूब लड़-झगड़ रहे हैं। तुम कुछ करो न दीदी। “
” ठीक है। तुम उधर बिल्कुल मत जाना। मैं कुछ करती हूँ।” रानी कोयल ने मनु बया को सख्त हिदायत दी; और वहाँ से उड़ गयी।
रानी और निशी बज्जू व नीलू के पास पहुँचे। उन्होंने बज्जू-नीलू को रोकने की बहुत कोशिश की। पर नाकाम रहे। खून से लथपथ नीलू ने निशी को अपने नजदीक आने से मना करते हुए कहा- ” निशी ! तुम यहाँ से जाओ। बच्चों को घर पर छोड़ कर क्यों आयी। जाओ घर। ” तभी अचानक नीलू के गरदन के नीचे हिस्सा पूरी तरह से बज्जू की नुकीली चोंच के पकड़ में आ गया। फिर नीलू की हालत देख निशी से रहा नहीं गया। आव देखा न ताव। बज्जू पर बिजली की तरह टूट पड़ी। नीलू और निशी के वार से बज्जू की हालत खराब हो गयी। उसका शरीर जवाब देने लगा। मुर्छा छाने लगी। मुर्छित अवस्था में ही बज्जू की साँसें उखड़ गयी।
फिर नीलू और निशी पंख फैलाये एक-दूसरे को चोंच से सहलाने लगे। दोनों की आँखों से प्रेम की अश्रुधारा फूट पड़ी।
— टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला “