अजीब दास्तां
अंदर ही अंदर लोग
कफ़न ओढ़ रहे है
मोहब्बत के नाम पर
दफन हो रहे है।
देखते नहीं सुनते नहीं
समझते भी नहीं
बस मोहब्बत के नाम पर
गम ढो रहे है।
अपनों का परायों का
यहां कोई भेद नहीं
अपने मतलब के लिए
बस छल कर रहे है।
जीत का हार का
किसी को कोई मतलब नहीं
बस अपने रुतबे के लिए
औरों को गिरा रहे है।
— डॉ. राजीव डोगरा