कविता

मृत्यु मेरी दोस्त

हे मृत्यु! तू इतना इतराती क्यों है?आखिर बेवकूफ बनाती क्यों है?आ जाने की धमकी देकर डराती क्यों है?तेरा सच मुझे पता हैतुझे आना नहीं होता हैतू तो हरदम सिर पर सवार रहती हैसिर्फ डराती, धमकाती हैपर अफसोस खुद बड़ी असमंजस में रहती है।तो सुन तू इतना हैरान परेशान न होतू स्वतंत्र है जो करना है करआने की धमकी देकर मुझे मत डरातुझे अब, कहां आना हैतू तो हमारे जन्म के साथ हीसुषुप्तावस्था में हमारे आसपास ही हैबड़े असमंजस में समय काट रही है।उहापोह से बाहर निकलजो करना है खुशी मन से करअपना कर्तव्य पूरा कर और खुश रहा करोमैं तुझसे डरता नहीं हूं,इसलिए बेवजह समय जाया न कर,डरने का कोई कारण भी तो नहीं है।आखिर मुझे जाना तो तेरे ही साथ हैफिर भला मुझसे डरने का मतलब ही क्या है?अच्छा है जब तक मौन साधे साथ हैमेरी आड़ी तिरछी लेखनी का अवलोकन करप्रशंसा न सही तो बुराई ही कर,पर चुपचाप शराफत से रहकरमेरे कर्म पथ की राह में अवरोधक भी न बन।इसमें तेरा ही लाभ हैमेरे साथ तेरा भी समय खुशी खुशी कट जायेगामेरा मान सम्मान अपमानतेरे समय काटने का साधन बन जायेगा।जब चलना हो तो मुझे निसंकोच बता देनाबिना किसी प्रतिरोध के मैं साथ हो जाऊंगातेरे कर्तव्य की राह में रोड़े नहीं अटकाऊंगा।पर कान खोलकर मेरी बात सुन समझ लेमजबूती से गांठ बांध लें, तू कुछ भी कर लेमैं तेरी धमकी में नहीं आऊंगातुझसे कभी डर भी नहीं पाऊंगातेरे खौफ का हौव्वा सिर पर नहीं चढ़ा पाऊंगा,पर इतनी शराफत भी जरुर दिखाऊंगाहर समय तुझे अपने से दूर भी न रख पाऊंगातेरा मान सम्मान सदा ही बढ़ाऊंगातेरे जीवन को नया अनुभव कराऊंगातू मेरी दोस्त है सारी दुनिया को बताऊंगा। सुधीर श्रीवास्तव गोण्डा उत्तर प्रदेश

हे मृत्यु! तू इतना इतराती क्यों है?

आखिर बेवकूफ बनाती क्यों है?

आ जाने की धमकी देकर डराती क्यों है?

तेरा सच मुझे पता है

तुझे आना नहीं होता है

तू तो हरदम सिर पर सवार रहती है

सिर्फ डराती, धमकाती है

पर अफसोस खुद बड़ी असमंजस में रहती है।

तो सुन तू इतना हैरान परेशान न हो

तू स्वतंत्र है जो करना है कर

आने की धमकी देकर मुझे मत डरा

तुझे अब, कहां आना है

तू तो हमारे जन्म के साथ ही

सुषुप्तावस्था में हमारे आसपास ही है

बड़े असमंजस में समय काट रही है।

उहापोह से बाहर निकल

जो करना है खुशी मन से कर

अपना कर्तव्य पूरा कर और खुश रहा करो

मैं तुझसे डरता नहीं हूं,

इसलिए बेवजह समय जाया न कर,

डरने का कोई कारण भी तो नहीं है।

आखिर मुझे जाना तो तेरे ही साथ है

फिर भला मुझसे डरने का मतलब ही क्या है?

अच्छा है जब तक मौन साधे साथ है

मेरी आड़ी तिरछी लेखनी का अवलोकन कर

प्रशंसा न सही तो बुराई ही कर,

पर चुपचाप शराफत से रहकर

मेरे कर्म पथ की राह में अवरोधक भी न बन।

इसमें तेरा ही लाभ है

मेरे साथ तेरा भी समय खुशी खुशी कट जायेगा

मेरा मान सम्मान अपमान

तेरे समय काटने का साधन बन जायेगा।

जब चलना हो तो मुझे निसंकोच बता देना

बिना किसी प्रतिरोध के मैं साथ हो जाऊंगा

तेरे कर्तव्य की राह में रोड़े नहीं अटकाऊंगा।

पर कान खोलकर मेरी बात सुन समझ ले

मजबूती से गांठ बांध लें, तू कुछ भी कर ले

मैं तेरी धमकी में नहीं आऊंगा

तुझसे कभी डर भी नहीं पाऊंगा

तेरे खौफ का हौव्वा सिर पर नहीं चढ़ा पाऊंगा,

पर इतनी शराफत भी जरुर दिखाऊंगा

हर समय तुझे अपने से दूर भी न रख पाऊंगा

तेरा मान सम्मान सदा ही बढ़ाऊंगा

तेरे जीवन को नया अनुभव कराऊंगा

तू मेरी दोस्त है सारी दुनिया को बताऊंगा। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921