चश्मा
नाक कान पर अटका चश्मा।
हमको राह दिखाता चश्मा।।
तेज धूप की चौंध न भाती,
आँखों को भरमाता चश्मा।
दृष्टि अगर कमजोर हमारी,
साफ-साफ दिखलाता चश्मा।
यदि हो आँख खराब किसी की,
शगुन न बुरा कराता चश्मा।
मुखड़े का शृंगार एक यह,
चारों चाँद लगाता चश्मा।
सूरदास भी सजते इससे,
दर्शक को जतलाता चश्मा।
‘शुभम्’ शौक का पूरक कृत्रिम,
मित्रो रंग-बिरंगा चश्मा।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’