कविता

मां का आंचल 

कभी धूप में छांव बन जाती है,

कभी पसीने में रूमाल बन जाती है,

थाम लो जो एक बार इसे,

जमीन क्या, ये पूरा आसमान बन जाती है।

कभी ये बिस्तर बन जाती है,

कभी हथपंखा,

अक्सर ओढ़ा है इसे सबने,

ये वस्त्र है सबके मनपसंद का ।

हम घूमें इसके चारों ओर,

ये घूमें हमारे संग संग,

कभी पोंछे आंसू हमारे,

कभी खिलखिलाएं हमारे संग।

पूरे ब्रह्मांड में हैं सबसे प्यारी,

सबसे अनमोल और शीतल,

जो है तेरे भी घर, जो है मेरे भी घर,

वो है एक मां का आंचल।

— शिल्पी कुमारी

शिल्पी कुमारी

जन्म स्थान - पटना, बिहार जन्म तिथि - 05.02. 1990 शिक्षा - स्नातक :_ आर.पी.एस महिला कॉलेज, पटना मगध विश्वविद्यालय , बिहार । चित्र विषारद , प्राचीन कला केंद्र(चंडीगढ़) स्नातकोत्तर :- पटना विश्वविद्यालय, पटना, बिहार। उपलब्धियां _ प्रकाशित पुस्तक- अनंता (काव्य संग्रह) तथा विभिन्न राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं। संपर्क - डॉ. विवेकानन्द भारती, (वैज्ञानिक आईसीएआर-आरसीईआर, पटना), c/o किरण सिंह, क्षत्रिय रेजीडेंसी , 3rd फ्लोर, फ्लैट नंबर - 302, रोड नंबर - 6A, विजय नगर, रुकनपुरा, पटना- 800014 (बिहार) मोबाइल नंबर - 8709311857 ईमेल_ [email protected]