हमारा रिश्ता
हमारा रिश्ता भी क्या खूब है,
जो कोई समझ ना सका,
हम दोनों बह गए इस रिश्ते में,
ऐसा लगा मानो,
कई सदियों से तुम्हें जानते हैं,
क्या पूर्व जन्म का रिश्ता तो नहीं,
तुम पास नहीं होते,
तो लगता है कुछ खाली सा है,
दिल के किसी कोने से टीस आती है,
तुम्हें देखे बिना मन नहीं मानता,
क्या तुम्हें भी ऐसा अह्सास होता है,
तुमसे बात नहीं होती तो ऐसा लगता है,
जैसे आज दिन नहीं निकला,
तुम अच्छे लगने लगे हो,
तुम सच्चे लगने लगे हो,
है कोई रिश्ता हमारा तुम्हारा,
जिसे हम कोई नाम ना दे तो अच्छा है,
तुमसे बातें करना मन को लुभाता है,
जाने कौन सा जादू है तेरी हंसी में,
मन गुदगुदाने लगता है,
अपना कीमती समय देकर मेरा मान बढ़ाता है,
हर कदम पर मेरा साथ देते हो,
जो दिल में रहते हैं वो दिल में रहते हैं,
प्रभु का धन्यवाद जिन्होंने तुम्हें मेरी जिन्दगी में भेजा।।
— गरिमा लखनवी