कविता

त्योहारी मौसम

हमारे देश में, हमारी संस्कृति और परम्पराओं मेंतीज त्योहारों की लंबी श्रृंखला हैत्योहारों का आना जाना निरंतर लगा ही रहता है,गणतंत्र दिवस, होली, रामनवमी के बादअभी अभी मजदूर दिवस बीता हुआ।बसंत पंचमी का भी आनंद हम सबने लिया।स्वतंत्रता दिवस, रक्षाबंधन, दशहरा, दिवाली, छट्ठपर्वगणेश चतुर्थी, दुर्गा पूजा, क्रिसमस आगे आने वाला है।ईद, मोहर्रम आदि भी इसमें शामिल है।त्योहारों का यह अटूट क्रम चलता ही रहता हैहमारे जीवन से त्योहारों का अटूट रिश्ता है अन्यथा हमारा जीवन हमेशा मुरझाया ही रहताऔर जीवन के हर हिस्से से त्योहारों के आगमन की खुशीऔर उम्मीदों भरा इंतजार जब न होता,तब प्राण होते हुए भी ये जीवन निष्प्राण सा लगता।जैसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में चुनाव भीमहत्वपूर्ण त्योहार जैसा है।त्योहारों की छाया मेंजातिधर्म मजहब की दीवार गिरती है,ऊंच नीच का भेद भी त्योहार मिटाती है।त्योहारों का रंग बहुरंगी होता है,आप माने या न माने क्या फर्क पड़ता है,पर मैं तो यही कहूंगा कि त्योहारों के बिनाहमारे जीवन का रंग बदरंग हो जायेगाजीवन का आधार तब खोखला हो जायेगा,जब त्योहारों का आना जाना नहीं होगाहमारा आपका ही नहीं धरती का भी जीवननितान्त रेगिस्तान बन जाएगा।हमारे जीने का हर मकसदमहज कल कारखाना बन कर रह जाएगा,जीवन का वास्तविक आनंद खो जाएगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

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