बाकी
खयालों की वो मुलाकात बाकी।
हुयी पूरी नही वो बात बाकी।
गले मिलते थे ख़्वाबों में कभी वो,
पुरानी है मगर वो रात बाकी।
न जाने गुफ्तगु होती थी कितनी,
मगर वो अनकहे जज़्बात बाकी।
किये हमदर्द ने वादे बहुत थे,
हुये गुम अब भी वो हालात बाकी।
नाम पे तेरे धड़कनों का यूं बेदार होना
वक्त गुज़रा मगर लम्हात बाकी
नहीं होता है अब कुछ भी सुनाना,
लफ्र्ज ख़ामोश हैं बस मात बाकी।
दर्द देने लगा हमदर्द दिल भी,
पिघलते अश्को की बरसात बाकी।
है तो फ़सानां ये गुज़िश्ता वक्त का,
कहें अंज़ाम कैसे है अभी हयात बाकी।
दिल है तनहां कहां तनहां “स्वाती”
साथ यादों की ये सौगात बाकी।
— पुष्पा ” स्वाती “