गीतिका/ग़ज़ल

बाकी

खयालों की वो मुलाकात बाकी।

हुयी पूरी नही वो बात बाकी।

गले मिलते थे ख़्वाबों में कभी वो,

पुरानी है मगर वो रात बाकी।

न जाने गुफ्तगु होती थी कितनी,

मगर वो अनकहे जज़्बात बाकी।

किये हमदर्द ने वादे बहुत थे,

हुये गुम अब भी वो हालात बाकी।

नाम पे तेरे धड़कनों का यूं बेदार होना

वक्त गुज़रा मगर लम्हात बाकी

नहीं होता है अब कुछ भी सुनाना,

लफ्र्ज ख़ामोश हैं बस मात बाकी।

दर्द देने लगा हमदर्द दिल भी,

पिघलते अश्को की बरसात बाकी।

 है तो फ़सानां ये गुज़िश्ता वक्त का,

कहें अंज़ाम कैसे है अभी हयात बाकी।

दिल है तनहां कहां तनहां “स्वाती”

साथ यादों की ये सौगात बाकी।

— पुष्पा ” स्वाती “

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 pushpa.awasthi211@gmail.com प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है