मुक्ति
क्या खूब चित्र था बच्चों की चित्र प्रदर्शनी में शिवम का! कोई थीम विशेष नहीं थी, शिवम बंदिशों पर लगाम लगाना चाहता था. सबको स्वतंत्रता से जीने का हक है, उसका मानना था.
एक पुरुष पंछियों को उड़ाकर आजाद कर रहा था, यह उस व्यक्ति की सोच थी! पंछी खुश थे. साथ ही एक महिला ने अपने श्वानों को जंजीर से बांधकर कैद कर रखा था. महिला ने श्वानों की जंजीरों को और जोर जकड़ा. वो उसका प्रेम था!
इतने महंगे पंछियों को यूं व्यर्थ ही उड़ाने पर महिला हैरान थी और अपनी कड़ी कैद पर श्वान हैरान और परेशान भी!
भले ही कितने भी सुख हों, मुक्ति तो मुक्ति ही होती है!
घर-परिवार की कड़ी बंदिशों से बंधे शिवम ने अपने मन के भावों की मुक्ति को चित्र के रूप में उकेरा था.
— लीला तिवानी