लघुकथा

मुक्ति

क्या खूब चित्र था बच्चों की चित्र प्रदर्शनी में शिवम का! कोई थीम विशेष नहीं थी, शिवम बंदिशों पर लगाम लगाना चाहता था. सबको स्वतंत्रता से जीने का हक है, उसका मानना था.
एक पुरुष पंछियों को उड़ाकर आजाद कर रहा था, यह उस व्यक्ति की सोच थी! पंछी खुश थे. साथ ही एक महिला ने अपने श्वानों को जंजीर से बांधकर कैद कर रखा था. महिला ने श्वानों की जंजीरों को और जोर जकड़ा. वो उसका प्रेम था!
इतने महंगे पंछियों को यूं व्यर्थ ही उड़ाने पर महिला हैरान थी और अपनी कड़ी कैद पर श्वान हैरान और परेशान भी!
भले ही कितने भी सुख हों, मुक्ति तो मुक्ति ही होती है!
घर-परिवार की कड़ी बंदिशों से बंधे शिवम ने अपने मन के भावों की मुक्ति को चित्र के रूप में उकेरा था.
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244