मुखिया
सत्संग में प्रवचन चल रहा था. बात मुखिया की चल रही थी.
“जब हिंदुस्तान में नई-नई रेलगाड़ी चली तो एक डेरे के बाबा जी प्रतिदिन रेलगाड़ी देखने जाते थे. एक दिन डेरे के सेवादारों ने पूछ ही लिया कि आप रोज रेलगाड़ी देखने क्यों जाते हैं?
“मुझे रेलगाड़ी के इंजन से प्यार हो गया है.” बाबा जी ने जवाब दिया. सेवादारों ने कारण पूछा.
बाबा जी बोले, “इसकी कुछ खास वजहें हैं. एक तो रेलगाड़ी का इंजन अपनी मंजिल पर पहुंच कर ही रुकता है, दूसरे अपने हर डिब्बे को साथ लेकर चलता है. फिर इंजन आग खुद खाता है और डिब्बों को खाने नहीं देता है. यह अपने तय रास्ते से भटकता नहीं है.”
“पांचवीं और आखिरी वजह यह है कि इंजन डिब्बों का मोहताज नहीं है.” तनिक रुककर बाबाजी बोले.
“परिवार के मुखिया को भी रेलगाड़ी के इंजिन जैसा ही होना चाहिए.” वहां बैठे परिवारों और संगठनों के मुखियाओं ने निष्कर्ष निकाला.
— लीला तिवानी