लघुकथा

मुखिया

सत्संग में प्रवचन चल रहा था. बात मुखिया की चल रही थी.
“जब हिंदुस्तान में नई-नई रेलगाड़ी चली तो एक डेरे के बाबा जी प्रतिदिन रेलगाड़ी देखने जाते थे. एक दिन डेरे के सेवादारों ने पूछ ही लिया कि आप रोज रेलगाड़ी देखने क्यों जाते हैं?
“मुझे रेलगाड़ी के इंजन से प्यार हो गया है.” बाबा जी ने जवाब दिया. सेवादारों ने कारण पूछा.
बाबा जी बोले, “इसकी कुछ खास वजहें हैं. एक तो रेलगाड़ी का इंजन अपनी मंजिल पर पहुंच कर ही रुकता है, दूसरे अपने हर डिब्बे को साथ लेकर चलता है. फिर इंजन आग खुद खाता है और डिब्बों को खाने नहीं देता है. यह अपने तय रास्ते से भटकता नहीं है.”
“पांचवीं और आखिरी वजह यह है कि इंजन डिब्बों का मोहताज नहीं है.” तनिक रुककर बाबाजी बोले.
“परिवार के मुखिया को भी रेलगाड़ी के इंजिन जैसा ही होना चाहिए.” वहां बैठे परिवारों और संगठनों के मुखियाओं ने निष्कर्ष निकाला.
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244