एक व्यंग्य – मेरा ख्याल
आज नहाते नहाते एक ख्याल आया. आपने नोट किया होगा अक्सर यह ख्याल नहाते और पेट साफ करते वक़्त ही आते हैं. ऐसा क्यों ? मेरे ख्याल में इस समय व्यक्ति एकाग्र होता है और उसका मस्तिष्क ज्यादा ही उर्वरक हो जाता है और इसी दौरान कोई न कोई ख्याल आ जाता है.ख्याल तो ख्याल है कुछ भी और कभी भी आ सकता है ,इस पर कोई रोक नहीं. ऐसे ही जैसे किसी का दिल कब किसी पर मेहरबान हो जाए.
हां यह तो मैंने अभी तक बताया ही नहीं कि ख्याल आया क्या था. बेफिजूल ख्याल था क्या बताना पर जब आ ही गया है तो बताने में हर्ज क्या? नहीं तो दिमाग दिन भर इसी में उलझा रहेगा कि ख्याल आया था तो बताया क्यों नहीं. नहीं आता तो कोई बात नहीं थी. ख्याल यह था कि अभी वैशाख हिंदी महीना है. इसके ख़तम होने के बाद 22 मई से 21 जून तक जेठ का महीना चलेगा. जेठ माह को ज्येष्ठ माह भी बोला जाता है. आखिर हमारे मनीषियों ने इस माह को जेठ या ज्येष्ठ का ही नाम क्यों दिया. इसे सावन, भादों, क्वार का नाम दे देते. नहीं ऐसे कैसे दे देते . उन्होंने बहुत अनुभव और सोच समझ कर ही इसे जेठ या ज्येष्ठ नाम दिया.
जेठ का महीना साल भर का सबसे गर्म महीना होता है. चिलचिलाती धूप और सूरज की किरणें सीधी पृथ्वी पर पड़ती हैं. गर्मी के कारण लू लगना, बुखार, पेट खराब और भी बीमारी होती है, तो जैसे पति के बड़े भाई यानी जेठ से पर्दा करके रहा जाता है या उनके सामना पड़ने पर पर्दा कर लिया जाता है ,ऐसे ही इस महीने में गर्मी से अपने बचाव के लिए जेठ के समान अपने को ढक कर ही घर से बाहर सूर्य भगवान के सामने निकले.इसलिए इस माह को जेठ नाम दिया होगा. मेरी तो छोटी सी समझ दानी में इतना ही समझ में आया. वैसे आप मित्रों की क्या राय है मेरे इस ख्याल पर.
अभिताभ बच्चन जी ने अपने ख्याल को कुछ इस तरह इज़हार किया था. फ़िल्म कभी कभी गीतकार साहिर साहिब संगीत ख़य्याम साहब आवाज मुकेश लता. पोस्ट के साथ गाने का लुफ्त लीजिए.
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिये
तू अबसे पहले सितारों में बस रही थी कहीं
तुझे ज़मीं पे बुलाया गया है मेरे लिये
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के ये बदन ये निगाहें मेरी अमानत हैं
ये गेसुओं की घनी छाँव हैं मेरी ख़ातिर
ये होंठ और ये बाहें मेरी अमानत हैं
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे तू मुझे चाहेगी उम्र भर यूँही
उठेगी मेरी तरफ़ प्यार की नज़र यूँही
मैं जानता हूँ के तू ग़ैर है मगर यूँही
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है
के जैसे बजती हैं शहनाइयां सी राहों में
सुहाग रात है घूँघट उठा रहा हूँ मैं (२)
सिमट रही है तू शरमा के अपनी बाहों में
कभी कभी मेरे दिल में, ख़याल आता है