दोहे
झूठों के करने लगे, जयकारा ये लोग
काम निकाले आपसे, करते हैं उपयोग
देश बने महान यहां, हो सपना साकार
माने फिर रमेश इसे, सारा ही संसार
मिलते तो अब है नहीं, आपस में ही लोग
पाल लिया परस्पर ही, नफ़रत का जब रोग
झूठे ही निकले सभी, दिये गये पैगाम
फिर भी देख तारीफ में, उनके आते नाम
बात बात पर ही जिसे, आता रमेश ताव
खुद ही देखे कर रहा, अपने पर ही घाव
मोबाइल पर अब यहां, आते हैं पैगाम
तब आता याद हमको, मिटा पत्रों का नाम
पीठ उठाती है सदा, गर्दिश का ही भार
इसलिए मजदूर रहता, हरदम ही लाचार
पेट के खातिर रहे, मजदूर सदा मौन
काम करता दिन भर ही, देखे रोके कौन
थककर सोता रात भर, उठता ताजी भोर
श्रमिक की खुले खिड़कियां, मन में उठे हिलोर
मिलता कहां मजूर को, पल भर देख विश्राम
फुर्ती देखे हाथ में, मलिक का है काम
— रमेश मनोहरा