माँ
नज़र आता नहीं कुछ भी हँसी अच्छी नहीं लगती |
गई हो छोड़ के जब से कमी अच्छी नहीं लगती |
तुम्हारी ही कहानी हैं तुम्हारे हम सभी बच्चे –
तुम्हारे बिन खिली ये रौशनी अच्छी नहीं लगती |
तुम्हारा साथ वह डोरी थी जिसने प्रेम से साधा –
यूँ दुनियाँ कूच कर जाना कमीं अच्छी नहीं लगती |
कभी कुछ कह दिया हो भूल वश वो माफ़ कर देना –
न होना आपका अब बेबसी अच्छी नहीं लगती |
तुम्हारी याद जबआये सदा आशीष देना माँ-
जो दिल में बात थी कह दी दबी अच्छी नहीं लगती |
नहीं थमता है थामे वक्त ये चलता ही जाता है –
समय जो साथ अपने ले गया वो बेखुदी अच्छी नहीं लगती |
भरे परिवार में भाई – बहन रिश्ते सभी नाते –
बिना अब आपके ये जिंदगी अच्छी नही लगती –
‘मृदुल’ मन रो रहा कुछ याद जो पल पल रुलाती है-
अनाथों सा हुआ जीवन ज़मी अच्छी नहीं लगती |
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’