गीतिका/ग़ज़ल

माँ 

नज़र आता नहीं कुछ भी हँसी अच्छी नहीं लगती |

गई हो छोड़ के जब से कमी अच्छी नहीं लगती |

तुम्हारी ही कहानी हैं तुम्हारे हम सभी बच्चे –

तुम्हारे बिन खिली ये रौशनी अच्छी नहीं लगती |

तुम्हारा साथ वह डोरी थी जिसने प्रेम  से साधा –

यूँ दुनियाँ कूच कर जाना  कमीं अच्छी नहीं लगती |

कभी कुछ कह दिया हो भूल वश  वो माफ़ कर देना –

न होना आपका अब बेबसी अच्छी नहीं लगती |

तुम्हारी याद जबआये सदा आशीष देना माँ- 

जो दिल में बात थी कह दी दबी अच्छी नहीं लगती |

नहीं थमता है थामे वक्त ये चलता ही जाता  है –

समय जो साथ अपने ले गया वो बेखुदी अच्छी नहीं लगती |

भरे परिवार में भाई – बहन रिश्ते सभी नाते –

बिना अब आपके ये जिंदगी अच्छी नही लगती –

‘मृदुल’ मन रो रहा कुछ याद जो पल पल रुलाती है-

अनाथों सा हुआ जीवन ज़मी अच्छी नहीं लगती |

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016