सहयोग
लघुकथा
सहयोग
“पापा, आज आप सबसे पहले बाजार जाकर गेहूँ खरीदे, फिर उसे चक्की में पिसवा कर भिखारिनों में बाँट दिये। यदि आपको आटा ही दान करना था, तो सीधे दुकान से ही आटा के पैकेट खरीद कर भी बाँट सकते थे। पर आपने ऐसा नहीं किया, जबकि उसमें आपका समय भी बचता ?” बारह वर्षीय बेटे ने जिज्ञासावश अपने पिता से पूछा।
“बेटा, ऐसा करके मैंने दो लोगों को लाभ पहुँचाया। पहला वह किसान, जिससे गेहूँ खरीदा, दूसरा उस चक्की वाले का, जिससे कि वह भी दो पैसे कमा सका। मेरा खर्चा तो उतना ही होता, या हो सकता है कि कुछ कम भी होता, थोड़ा समय भी बच जाता, यदि सीधे दुकान से आटा के पैकेट खरीद कर देता। पर यदि थोड़ा-सा समय देकर कुछ जरूरतमंद लोगों की मदद हो सकती है, तो उसे करनी ही चाहिए।” पिताजी ने प्यार से समझाते हुए कहा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़