संस्मरण

और मैं सचमुच दौड़ने लगा

आज से लगभग छह साल पहले पिताजी के स्थानांतरण के कारण हम लोग साहिबगंज जिला मुख्यालय आ गए। मेरा दाखिला सेंट जोसेफ अकादमी में कराया गया। सात  वर्ष की उम्र में मेरा दाखिला  स्टैंडर्ड वन में हुआ। गाँव  के स्कूल से सीधे  शहर के प्रतिष्ठित स्कूल में जब पहुँचा  तो भीतर से  मैं सहमा हुआ था। अंग्रेजी की मेरी लिखावट देखकर क्लास टीचर ने कह दिया कि यह लड़का इस स्कूल में नहीं चलेगा। स्कूल  की छुट्टी होने पर मैं घर आया और रोने लगा। मम्मी डर गईं  कहीं मैं स्कूल जाना ही न छोड़ दूँ।

शाम को जब पिताजी घर आए तब मम्मी से सारी बातें सुनकर उन्होंने मेरी पीठ थपथपाकर कहा, “अरे चलने की बात छोड़ो,एक महीने के अंदर तुम दौड़ोगे।”

 पिताजी के  कुशल मार्गदर्शन तथा अपने सहपाठियों के सहयोग से पहली परीक्षा में ही मुझे पाँचवाँ स्थान मिला। शिक्षकों ने भी मेरी पढ़ाई में भरपूर मदद की थी। फाइनल परीक्षा में मैं टॉपर रहा और कुल मार्क्स  95 प्रतिशत से ज्यादा रहा। मेरा रिजल्ट कार्ड देखकर पिताजी ने कहा, “रेस का घोड़ा सरपट दौड़ा।” वह दिन याद आने पर आज भी मेरी आँखों ‍में आंँसू आ  जाते हैं जब क्लास टीचर ने कहा था कि यह लड़का नहीं चलेगा। वही क्लास टीचर बाद में मुझे बहुत प्यार करने लगी। मैं उन्हें अपना मार्गदर्शक मानता हूँ।

— नयन कमल दे

द्वारा निर्मल कुमार दे 

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]