लालच ने
इज्ज़त की मीनार गिरा दी लालच ने
आँगन में दीवार उठा दी लालच ने
ऐसी चिंगारी भड़की भौतिकता की
सम्बंधों में आग लगा दी लालच ने
पंथों की हर एक रवायत बिसरा दी
ग्रंथों की हर बात भुला दी लालच ने
सब कुछ पा लेने की ऐसी होड़ लगी
मन से शर्म लिहाज मिटा दी लालच ने
चाहे जैसे भी हो माल करो अंटी
सबके मन में बात बिठा दी लालच ने
प्रेम समर्पण अपनेपन की धरती को
ख़ुदग़र्ज़ी की सीख सिखा दी लालच नें
आदर्शों पर ऐसी चोट करी बंसल
मानवता की नीव हिला दी लालच ने
— सतीश बंसल