कविता

अपने अपने राम

एक राम अवध के राजा,
एक अखिल ब्रह्मांड के धाम,
अजर अमर अविनाशी प्यारे,
सबके अपने अपने राम।

दशरथ प्राण-आधारे राम,
कौशल्या के दुलारे राम,
हनुमत के हृदय में बसते,
सीता प्राण-प्यारे राम।

शबरी के धीरज में राम,
केवट की नैय्या में राम,
दुष्ट-दलन, भक्तों के तारक,
मित्रता-प्रतिमान हैं राम।

रामायण में राम-ही-राम,
कलि में राम सकल गुण-धाम,
जो भी जैसे उनको ध्याए,
वैसे रूप में आते राम।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244