अपने अपने राम
एक राम अवध के राजा,
एक अखिल ब्रह्मांड के धाम,
अजर अमर अविनाशी प्यारे,
सबके अपने अपने राम।
दशरथ प्राण-आधारे राम,
कौशल्या के दुलारे राम,
हनुमत के हृदय में बसते,
सीता प्राण-प्यारे राम।
शबरी के धीरज में राम,
केवट की नैय्या में राम,
दुष्ट-दलन, भक्तों के तारक,
मित्रता-प्रतिमान हैं राम।
रामायण में राम-ही-राम,
कलि में राम सकल गुण-धाम,
जो भी जैसे उनको ध्याए,
वैसे रूप में आते राम।
— लीला तिवानी