कविता

गहन साजमंस्य जरूरी

बड़ा कठिन यह यक्ष प्रश्न है,
तन जरुरी है या जरूरी है मन,
बहुत सरल इसका जवाब है,
तन भी जरुरी, जरूरी है मन।

तन स्वस्थ तो मन प्रसन्न हो,
मन स्वस्थ तो तन फुर्तीला,
दोनों स्वस्थ हों, संयमित हों तो,
जीवन भी हो जाए सजीला।

चिकने-गरिष्ठ और जंक फूड से,
जीवन भर के रोग हैं लगते,
पौष्टिक भोजन से हैं तन-मन,
स्वस्थ रहते, सद्कर्मों में लगते।

स्वस्थ तन में ही तो है होता,
स्वस्थ मन का सदा निवास।
मन हो अगर उच्छृंखल तो फिर,
तन भी हो जाता बहुत उदास।

तन है साधन, मन साध्य है,
तन है सेवक, मन है स्वामी,
गहन साजमंस्य तन-मन का हो तो,
रहने न पाए कोई खामी।

— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244