कविता

मरा हुआ आदमी

मरा हुआ आदमी

सबसे पहले मरने का इंतजार करता है,

होते भी है या नहीं वो

आत्मा भी मर जाती है,

फिर मरा हुआ आदमी बोलना चाहता है,

पता नहीं किस मंसूबे से

मुंह खोलना चाहता है,

पर मुंह खोल नहीं पता,

कुछ भी बोल नहीं पाता,

क्योंकि वो पहले से मरा हुआ जो है,

वो चीखना चाहता है,

चिल्लाना चाहता है,

पर कुछ भी कर नहीं पाता,

क्योंकि पहले कभी मुंह खोला जो नहीं था,

समाज को कुछ बताना चाहता है,

कुछ जताना चाहता है,

पर कुछ कर नहीं सकता,

क्योंकि समाज के बीच कभी गया नहीं,

मरी हुई जिंदगी में

सिर्फ तृष्णा के पीछे भागा था,

समाज खातिर चंद लम्हा भी नहीं जागा था,

इस तरह फिर से मर जाता है

वो मरा हुआ आदमी।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554