गीतिका/ग़ज़ल

महान साहित्यकार सुरजीत पातर को समर्पित ग़ज़ल

साहित्य का गुलज़ार बनाया पातर ने।

एक अलग संसार बनाया पातर ने।

सृजन वाली शक्ति भक्ति उस में थी,

बिम्बों का किरदार बनाया पातर ने।

ग़ज़लों गीतों वाली कर के सृजनता,

बोली का सत्कार बनाया पातर ने।

देश-विदेशों में पंजाबी का सूरज,

आर बनाया पार बनाया पातर ने।

इसके सिर पर ताज लगा का सृजन का

पंजाबी को सरदार बनाया पातर ने।

आकाशवाणी, दूरदर्शन की प्रतिभा,

प्रतिष्ठा को दमदार बनाया पातर ने।

मां बोली की हृदय से सुश्रूषा की,

एक सच्चा किरदार बनाया पातर ने।

मर्मस्वर्शी ग़ज़लों, गीतों के बल से,

गायकों को फनकार बनाया पातर ने।

साहित्य की झोली में पा कर पुस्तकें,

एक सुन्दर उपहार बनाया पातर ने।

बुनती लेकर नवयुग के हालातों की,

पृथक सभ्याचार बनाया पातर ने।

कृतित्व एंव व्यक्तित्त्व के फूल लेकर,

साझा वाला हार बनाया पातर ने।

भाषा वाले आधुनिक आभूषण लेकर,

दुल्हन का श्रृंगार बनाया पातर ने।

बालम अक्षर जननी वाले उद्यम से,

शब्दों का भण्डार बनाया पातर ने।                

— बलविन्दर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409