कविता

ये अनुपम सिक्के

बड़े काम के हैं उम्मीद के सिक्के,
साहस का पर्याय हैं उम्मीद के सिक्के,
जीना बहुत आसान बन जाता है जब,
जेब में हों चंद खनकते उम्मीद के सिक्के।

जतन से सहेज कर रखिए, ये अनुपम सिक्के,
आशा के शुभ दीप जलाते, ये अनुपम सिक्के,
मन में नहीं निराशा आए, जले जब ज्ञान की ज्योति,
उन्नति की राह रोशन करते, ये अनुपम सिक्के।

मंजिल पानी है तो, उम्मीदों की नाव बनालो,
उम्मीदों के हरित-हरित कालीन तो बिछाओ,
उन पर तपिश का आनंद लेते सूर्य की तस्वीर,
उम्मीदों से पार उतरकर, अपनी तकदीर बनाओ।

आशा की किरणें उम्मीदों को रोशन करती हैं,
निराशा की जड़ों को समूल नष्ट करती हैं,
नहीं कभी भी मन में रखिए व्यर्थ की अपेक्षाएं,
उम्मीद की उज्ज्वल झलक से मन मगन करती हैं।
— लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244