कहानी

और जंगल सफारी में वन्यजीवों ने दुष्ट मनुष्यों को देखा

शान्ति स्थापित करने तथा स्वयं को सर्वश्रेष्ठ तथा सबसे शक्तिशाली सिद्ध करने की प्रबल इच्छा तथा प्रतिस्पर्धा में विश्व के सभी विकसित और शक्तिशाली देशों ने तीसरा विश्वयुद्ध छेड़ा. और वही हुआ जो कि प्रकृति, वनस्पति और जीवजगत के अभिशाप से होना ही था. पूरे विश्व में मात्र हजार डेढ़ हजार लोग बच पाएं. जिन्हें परमात्मा के आदेश से अनन्त काल तक जीवित रहने का अभिशाप मिला था. शेष सब कुछ परमाणु हथियारों के अंधाधुंध दुरुपयोग ने तहस-नहस कर दिया था.

पूरे विश्व में एक भी भवन नहीं बचा था. सबकुछ मिट्टी का था और मिट्टी में समा चुका था. सीमेंट कांक्रीट के जंगल गायब हो गए. कदाचित संहार के देव शिवजी ने नवनिर्माण के लिए इस प्रलय लीला को रचा था. ऐसा लग रहा था कि प्रकृति शताब्दियों से इसी अवसर की प्रतीक्षा कर रही थी. ब्रह्माजी नवनिर्माण की अपनी शक्तियों के साथ प्रकट हुए. उनकी कृपा से कुछ ही समय में युद्ध की विभीषिका के सारे चिन्ह गायब हो गए. पूरा विश्व फिर से वैसा हो गया, जैसा मनुष्यों के अवतरण के पहले था. आकाश, वायु, जल, पृथ्वी और अग्नि तत्व अपना-अपना स्वच्छ, प्रदूषणरहित, सुन्दर, स्वस्थ और मूल रूप पाकर प्रसन्नता से नाचने लगे. मनुष्यों द्वारा जलाकर, काटकर या वृक्षों को कथित रूप से बीमार सिद्ध कर समग्र रूप से नाश को प्राप्त घने वन स्वत: प्रकट हो गए. नेताओं-अधिकारियों की मिलीभगत से खनन माफियाओं द्वारा छिल-कुरेद कर गायब कर दिए गए पहाड़ और पर्वत फिर से अस्तित्व में आ गए. प्रकृति तथा मानवता के शत्रु, रेत के सौदागरों द्वारा अपहरण की गई नदियां, जलाशय, झीलें, झरने पुन: बहने लगें. वन्यजीव, आकाशीय जीव और जलजीव फिर से निर्भीक होकर विचरण करने लगे. सभी को ऐसा लग रहा था मानो उन्होंने एक अत्यन्त ही त्रासद, दुखद, दीर्घकालीन और अनपेक्षित दु:स्वप्न देखा था.

वनराज शेर का पूरी धरती पर पुन: एकछत्र राज्य स्थापित हो गया. शेर को गहन चिन्ता थी कि अपने शावकों और अन्य वन्यजीवों के बच्चों को मनुष्य नामक खतरनाक, दुष्ट, शातिर, अप्रत्याशित [अनप्रेडिक्टेबल], कृतघ्न, निर्मम, नीच, हिंसक, विवेकशून्य, अहंकारी जीव से कैसे बचाया जाए? इसी चिन्ता के समाधान में कई चिन्तन कार्यशालाएं आयोजित की गईं. सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया गया कि लोमड़ दादा सभी जीवों के शावकों को जंगल सफारी के माध्यम से मनुष्यों के लिए बनाए गए बीस-पच्चीस अभयारण्यों में छोड़े गए मनुष्यों को दूरबीन से दिखाएँगे. साथ ही मनुष्यों को पहचानना सिखायेंगे. मनुष्य द्वारा वनों, वन्यजीवों एवं वनस्पतियों के प्रति किए गए अत्यन्त दुष्टतापूर्ण व्यवहार की जानकारियाँ देंगे. साथ ही मनुष्यों के प्रकृति विरोधी कृत्यों की अनेक सत्य कथाएं भी सुनायेंगे.

मनुष्यों के डर से, परमाणुरोधक, बुलेट प्रूफ एवं सभी तरफ से पारदर्शी बड़ी-सी जीप में सभी वन्यजीवों के बच्चों को बिठाया गया. सभी को उच्च स्तरीय दूरबीन दिए गए. ड्राइवर की सीट पर बन्दर दादा बैठें थे. सुरक्षा की दृष्टि से पीछे-पीछे चलने वाली जीप में ब्लैक कमाण्डों के रूप में बारह खूंखार, चौकन्ने और प्रशिक्षित काले रंग के कुत्तें तैनात किए गए. ये कुत्तें किसी भी विपरीत स्थिति से शावकों को बचाने के लिए “कुछ” भी कर सकने में कुशल थे. इन कुत्तों के दिलोदिमाग में मनुष्यों के प्रति घोरतम घृणा का स्थायी भाव था, क्योंकि जब भी किसी कृतघ्न मनुष्य का अपमान करना होता था तो मनुष्य उसे कुत्ता नाम से सम्बोधित किया करते थे. जबकि कुत्तों जैसा वफादार प्राणी पूरे संसार में कोई था ही नहीं. कभी किसी भी कारण से खिलाई गई एक बासी रोटी तक का अहसान कुत्तें कभी नहीं भूलते हैं. सभी वन्यप्राणियों की दृष्टि में विश्व का सबसे कृतघ्न प्राणी मनुष्य ही था. वन्यजीवों को यह बताया गया था कि यदि कोई भी जीव अपने जीवनकाल में पाप कर्म करता है या विवेकशून्य काम करता है अथवा प्रकृति के नियमों का उल्लंघन करता है तो उसे अगले जन्म में नरक के रूप में मनुष्य योनि मिलती है. सफारी के दौरान लोमड़ दादा मनुष्यों के कुकृत्यों के किस्सें बताते जा रहे थे.

वन्यजीवों के शावकों के प्रश्नों का उत्तर देते हुए, लोमड़ दादा ने बताया कि भगवान ने शेर, चीता, बाघ आदि को मांसाहारी बनाया है, इसलिए हिंसक होते हुए भी वे भरे पेट कभी किसी का शिकार नहीं करते हैं, फिर चाहे हिरण या अन्य जीव उनके आसपास घूमते रहें. किसी का शिकार तभी करते हैं, जब बहुत भूख लगी हो. पेट भर जाने पर शिकार को दूसरों के लिए छोड़ देते हैं. ऐसा आज तक नहीं हुआ कि कई तरह के अनेक जानवरों को मारकर उनका थोड़ा-थोड़ा मांस खाकर शेष मांस को बर्बाद होने के लिए जूठा छोड़ दिया हो और न ही कभी उसे भविष्य के लिए सहेज कर रखा है. इसे ही विवेक कहते हैं. जबकि मनुष्य बिना भूख लगे भी खाता ही रहता है. भोजन बर्बाद करने में तो वह पहले नम्बर पर है. वह मूलतः शाकाहारी होते हुए भी शेर सहित सभी तरह के जीवों की हत्या करता रहता है. लोमड़ दादा बोलें कि मनुष्यों के सभी दुर्गुणों का वर्णन करना मेरे बलबूते की बात नहीं है.

इक्का दुक्का अभयारण्यों को छोड़कर सभी में पानी से भरी प्लास्टिक की बोतलों के ढेर थे. इन ढेरों के बारे में लोमड़ दादा ने बताया कि जितने भी मनुष्य बचें हैं, वे भगवान के श्राप के कारण नदी, तालाबों और झरनों का पानी नहीं पी सकते हैं. जैसे ही वे हाथों से पानी को छूते हैं, उन्हें बहुत तेज झटका लगता है और उनके हाथों में कई घण्टों तक जलन होती रहती है. ये जो बोतलों में पानी रखा है, यह मनुष्यों के द्वारा एकत्रित बरसाती पानी है. मनुष्य यह जानते हैं कि प्लास्टिक की बोतलों में रखा पानी नपुंसकता और लीवर तथा स्तन कैंसर दे सकता है. चूँकि धरती पर रहने वाले मनुष्यों ने पानी की कभी कदर नहीं की थी, इसलिए भगवान ने पानी का मूल्य समझाने के लिए उन्हें यह स्थायी सजा दी है. साथ ही मनुष्यों ने धरती माता को प्लास्टिक और तम्बाकू, फास्टफूड आदि के पाउचों से पाट दिया था, इसलिए उसे भगवान ने ये सजा दी थी. खुले मैदानों में रखी इन बोतलों के गर्म पानी को पीना इन मनुष्यों की विवशता थी. इसके अलावा वृक्षों के घोर दुश्मन मनुष्यों को यह श्राप भी मिला था कि जहां-जहां मनुष्य होंगे वहां-वहां वृक्ष नहीं होंगे, केवल पांच-सात फीट ऊँची झाड़ियां ही होंगी. झाड़ियों में लगने वाले फल, कन्द-मूल खाकर वे अपनी भूख मिटा सकेंगे. वन्यजीवों और पक्षियों को बेघर करने वाले इन मनुष्यों को जीवनभर बेघर रहने का अभिशाप मिला था, इसलिए वे चाहकर भी झोंपड़ी नहीं बना सकते हैं. वन्यजीवों को अपने साथियों से दूर करने वाले इन मनुष्यों को भी अकेले रहने का अभिशाप मिला था. इसलिए वे एकाकी जीवन जीने को विवश थे.

जीप 20 किलोमीटर की गति से आगे बढ़ रही थी. अचानक लोमड़ दादा ने साँपों, छिपकलियों, चूहों, मेंढकों की भयपूर्ण कातर आवाजें तथा चीखें सुनी तथा उन्हें भागते हुए देखा. यह अलर्ट अलार्म था. दादा ने सभी को चुप रहने का संकेत करते हुए ध्यान से सुनने के लिए कहा. कुत्तों ने भी भोंककर एलर्ट यानी सचेत किया. पूछे जाने पर लोमड़ दादा ने बताया कि आसपास चीनी लोग हैं. ये लोग सांप, बिच्छू, छिपकली आदि जंतुओं को जिन्दा खा जाते हैं. लोमड़ दादा के संकेत पर एक विशेष दिशा की ओर सभी ने अपने-अपने दूरबीनों से देखा. थोड़े-से प्रयासों के बाद अलग-अलग स्थानों पर चार-पांच चीनियों को देखने में सफल हो गए. दादा ने बताया कि ये मानव बहुत ही हिंसक, दुष्ट, शातिर होते हैं. इन्होंने अपने ही बंधू-बांधवों का साम्यवाद के नाम पर खूब शोषण किया है. चीनी शासकों ने दुनिया का सुपर पॉवर बनने का सपना पूरा करने के चक्कर में बहुत ही खतरनाक साजिशें की हैं. यह बात लोमड़ दादा सहित किसी भी वन्यजीव को पता नहीं थी कि भगवान के श्राप से ये लोग अब किसी भी जीव को खाने में असमर्थ थे. कर्मफल के सिद्धांत के चलते इन सभी के शरीर में दुर्गन्ध भरे अनेकों घाव थे. उस भयावह दुर्गन्ध के कारण ये लोग एक दूसरे के पास फटकते भी नहीं थे.

जीप आगे बढ़ी, एक बोर्ड लगा था, बालीवुड. लोमड़ दादा ने एक बटन दबाकर जीप को चारोंओर से खोल दिया. साथ ही बताया कि इस क्षेत्र में भारत के अधोमुखी मानसिकता [कमर से नीचे की सोच वाले] के फिल्मी कलाकार रहते हैं. इन कलाकारों के जीवन का एकमात्र लक्ष्य यही रहा कि जैसे भी हो, अत्यन्त प्रतिभासंपन्न भारतीय युवा और किशोर पीढी को नशे, हिंसा, नग्नता, स्वच्छंद यौनाचार और अश्लीलता के समुद्र में धकेल कर उनकी सम्भावनाओं का नाश करना. साथ ही उन पर पाश्चात्य संस्कृति थोपना. सनातन धर्म के प्रति भारतीयों में तिरस्कार का भाव पैदा करना. वे एक सीमा तक सफल भी हो गए थे. इनमें द्विअर्थी वाक्यों का बहुलता से उपयोग करने वाले लोग भी थे. सभी फिल्मी हीरोइनें के पूर्ण नग्न शरीर के दर्जनों घावों पर मक्खियां भिनभिना रही थी. इन सुंदरियों के घावों तथा घावों से निकल रही दुर्गन्ध के कारण उनमें कोई आकर्षण नहीं बचा था. वहां घूम रहे भिखारी और शोहदें भी उनके नग्न शरीर की तरफ आँख उठाकर नहीं देख रहे थे. किसी को भी आकर्षित नहीं कर पाने के कारण वे उदास भी थीं. गुटकों, आरो पानी, शराब, माइक्रोवेव ओवन, कच्छों, डिओडोरेंट, रिफाइंड तेलों, फास्टफूड, कोल्डड्रिंक, कण्डोम, गर्भपात की दवाओं आदि का प्रचार करने वाले सारे कलाकारों को मुंह का कैंसर हो गया था. कैंसर के घाव बेहद दर्दनाक थे, उनके मुंह टेढ़े हो चुके थे. उनकी संतानों के भी यही हाल थे, क्योंकि शास्त्रों में लिखा है, पापं संक्रमते नृणाम्. पाप का फल संगति करने वाले सभी लोगों को भोगना ही पड़ता है. कुछ फिल्मी कलाकारों ने पहले पढ़ रखा था कि गाय का गोबर लगाने और गौमूत्र पीने से घावों में आराम मिलता है, इसलिए वे भारतीय गायों को खोजते रहते थे. यह परमात्मा की ही लीला थी कि कभी-कभी उन्हें गाय का गोबर नदी के किनारे पड़ा हुआ दिख जाता था, तो वे उसे बड़े जतन से उठाकर लाते और घावों पर लगा लिया करते थे. ऐसा करने से तीन-चार दिन तक उनके घावों को राहत मिलती थी और मक्खियाँ भी दूर रहती थी. तीन-चार महीनों में एकाध बार गायें दिख जाया करती थी, तो वे गौमूत्र के लिए उनके पीछे-पीछे बहुत दूर तक जाते और गौमूत्र पीकर स्वयं को सौभाग्यशाली समझते थे, क्योंकि उन्हें कई दिनों तक कम पीड़ा होती थी. इसी क्षेत्र में बलात्कारी तथा नारी-पुरुष का विभिन्न तरीकों से शोषण करने वाले लोग भी थे. नशे की दवा के माफिया भी इसी नरक में थे. लोमड़ दादा ने इन सभी कलाकारों के पुराने फोटों भी दिखाएं. इसतरह यह पाठ भी पढ़ा दिया कि मनुष्यों की तरह पाप करेंगे तो अगले जन्म में मनुष्य जैसा नारकीय जीवन जीना पड़ेगा.

जीप आगे बढी. लोमड़ दादा ने दूरबीन से देखा कि आधा किलोमीटर दूरी पर, बीच रास्ते पर दो मित्र गिलहरियाँ आपस में लड़ रही हैं और लहूलुहान हो गईं हैं. उनके संकेत पर बन्दर दादा ने जीप की गति कम की. वायरलेस से कुत्तों को सजग किया. लोमड़ दादा ने बताया कि सभी जीव सावधान रहें, और अपने-अपने दूरबीनों से बाईं तरफ देखें. कुछ अमेरिकी घूम रहे हैं और कुछ जमीन पर पड़े दर्द से कराह रहे हैं. ये दुनिया के सबसे दुष्ट, धूर्त, खतरनाक, परपीड़क [सेडिस्ट], दूसरों का अनिष्ट कर धन कमाने वाले लोग हैं. ये विभिन्न देशों को घातक हथियार बेचते हैं और फिर उन्हें आपस में लड़ाने में सफल हो जाते हैं. इनकी उपस्थिति मात्र से गिलहरियों ने आपस में खूनी लड़ाई लड़ी. ये लोग इतने शातिर रहें हैं कि विज्ञान की प्रयोगशाला में काम करते-करते कोई दवा बन जाती तो फिर उसके हिसाब से बीमारियों का आविष्कार कर देते हैं. इन्होंने कण्डोम और गर्भपात की दवा-उपकरण बेचने के लिए एड्स का आविष्कार किया था. अब भगवान ने इन्हें कई तरह की नई-नई बीमारियां दे डाली हैं और अब ये जड़ी-बूटियों और झाड़ियों की फुल-पत्तियों आदि से दवा बना-बना कर खुद पर ही क्लिनिकल ट्रायल करते रहते हैं, परन्तु हर बार असफलता ही हाथ लगती हैं. इनसे हम सभी को बहुत अधिक खतरा है. ये कभी भी कोई घातक हथियार बना कर हमारा सर्वनाश कर सकते हैं. हालांकि हमारे जासूस गुपचुप रूप से इनकी चौबीसों घण्टें निगरानी करते रहते हैं. ये कुछ भी बनाकर रखते हैं तो हमारे प्रशिक्षित चूहें अपनी जान पर खेलकर रातोंरात नष्ट कर देते हैं.

लगभग बीस किलोमीटर दूर जाने पर अचानक शीतल, मन्द और सुगन्धित हवा बहने लगी. सबके मन में निर्भीकता और शान्ति का अनुभव होने लगा. लोमड़ दादा ने जीप को चारोंओर से खोल दिया और बताया कि आगे कई हजार एकड़ भूखण्ड पर सनातन साधुओं, तिब्बती लामाओं, बौद्ध, जैन संतों और पूरे विश्व के सभी धर्मों, यथा ईसाई, इस्लाम, सिख, यहूदी आदि के सदाशयी व्यक्तियों के आश्रम हैं. ये जियो और जीने दो के सिद्धांत को मानते हैं. सभी जीवों के प्रति इनका मैत्रीभाव है. करोड़ों की संख्या में फलदार, छायादार और सुगंधों से भरपूर वृक्ष हैं. लाखों की संख्या में वन्यजीव आपसी वैर भुलाकर यहाँ साथ-साथ निर्भीकतापूर्वक विचरण करते हैं. एक ही घाट पर सभी पानी पीते हैं. यहाँ के नदी, तालाबों, झरनों के पानी में औषधीय शक्तियां हैं. इन संतों का स्पर्श पाने के लिए जीवों में होड़ लगी रहती है. लोमड़ दादा के कहने पर सभी जीप से उतर गए और उन्होंने संतों के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया. वृक्षों के नीचे कुछ देर तक विश्राम किया, नदियों के पवित्र जल में स्नान कर पानी का सेवन भी किया. शेर शावक ने पूछा-क्या, सभी जैन, बौद्ध, सनातनी, ईसाई अनुयायी शाकाहारी होते हैं? लोमड़ दादा ने उत्तर दिया, नहीं. इन धर्मों के करोड़ों अनुयायियों ने इस सत्य को भूला दिया था कि भगवान ने मानव शरीर को शाकाहार के हिसाब से बनाया है.

सफारी आगे बढी. अचानक एक आश्चर्यजनक दृश्य सभी ने देखा कि सैकड़ों की संख्या में पेड़-पौधें अपने फलों को गिराते हुए दौड़ते हुए पूर्व दिशा की तरफ भाग रहे हैं. बार-बार पीछे मुड़-मुड़ कर देखते भी जाते हैं. ऐसा अभूतपूर्व दृश्य देखकर सभी शावक डर कर जीप में दुबक गए. लोमड़ दादा बोलें, किसी को भी डरने की आवश्यकता नहीं है. तुम सभी निर्भीकतापूर्वक अपनी-अपनी दूरबीन से इस क्षेत्र के पश्चिमी हिस्से की तरफ ध्यान से देखो. ये उन मनुष्यों का क्षेत्र है, जिन्होंने वनों को जलाकर या काटकर या अन्य किसी बहाने से अरबों-खरबों की संख्या में पेड़-पौधों का नाश किया था. भारत और अन्य देशों के ये लोग खरबों पक्षियों और वन्यजीवों के हत्यारे हैं. मंत्री-संतरी-ठेकेदार या वनरक्षक के रूप में, अपने पदों का दुरुपयोग करते हुए, इन लोगों ने अनेक दशकों तक लकड़ी के अवैध व्यापार के लिए जंगलों का बहुत विनाश किया है. जंगली जानवरों और पक्षियों के मांस, खाल, सिंग, दांत, नाखून, खूर आदि का घिनौना व्यापार किया है. इनमें से जो भारतीय हैं, उन पाखंडियों को यह पता था कि पीपल, बरगद, गूलर, आम, आंवला जैसे पूजनीय वृक्षों को कटवाने से वंशजों को कष्ट भोगना पड़ते हैं और वंश का विनाश भी होता ही है, फिर भी वंशजों के सुख के लिए पैसा बटोरने की नीयत से इन्होंने ऐसे पेड़ों को काटने के आदेश जारी किए थे. ऐसे मनुष्यों की गंध मात्र से समूचा वनस्पति और जीवजगत भयभीत हो जाता है. ऐसे कई लोग अपनी संतानों के साथ गम्भीर रूप से बीमार अवस्था में कष्ट भोगते हुए यहाँ धरती पर पड़े रहते हैं, चल भी नहीं पाते हैं. रेंग-रेंग कर आगे बढ़ पाते हैं. इनमें वो लोग भी हैं, जिन्होंने पानी को बेचने का धंधा किया था. ये लोग जहां-जहां भी जाते हैं, वहां-वहां के पेड़-पौधें और झाड़ियाँ भी वहां से दूर भागते चले जाते हैं. इसलिए ये लोग गर्मियों में बहुत ही कष्टकारी स्थितियों में जीवनयापन करते हैं, क्योंकि भगवान ने इनके लिए झाड़ियों का भी प्रावधान नहीं रखा है. धरती पर पहले से गिरे हुए फल, पत्तियां आदि खाकर अपनी भूख जैसे-तैसे मिटाते रहते हैं. लोमड़ दादा ने आगे बताया कि ये मनुष्य सदियों तक ऐसी ही स्थितियों में जियेंगे, मांगने पर भी मौत नहीं मिलेगी.

कुछ किलोमीटर दूर जाने पर अचानक रास्ते में कुछ पगमार्क देखकर लोमड़ दादा ने बोला कि जीप से उतर कर इन पगमार्क को ध्यान से देखो. इन्हें पहचान लो. मनुष्यों के पगमार्क ऐसे होते हैं. इस क्षेत्र के मनुष्यों से कोई खतरा नहीं है. यहाँ बहुत ही मोटे व्यक्ति रहते हैं. ध्यान से देखो, ये बहुत ही मोटे व्यक्ति का पगमार्क है. धुल में इनके निशान गहराई लिए हुए हैं. ऐसे लोग टीवी देखते हुए दिनभर फास्टफूड खाया करते थे. आलस्य के चलते व्यायाम नहीं करते थे. दौड़ने में असमर्थ ये व्यक्ति किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाते हैं. थोड़ा पैदल चलने पर लोमड़ दादा ने कुछ और पगमार्क दिखाते हुए बताया कि इनमें से कुछ को डायबिटीज भी है. ध्यान से देखो, उनके मूत्र के आसपास चींटियाँ रेंग रही है. इन लोगों ने जीवन में कभी अन्न का सम्मान नहीं किया. अपनी थालियों में स्वेच्छा से लिए गए आधे से अधिक भोजन को जूठा छोड़कर कूड़ेदान में डालने वाले, ये लोग आज अन्न के दाने-दाने को तरस रहे हैं. इनमें वे लोग भी हैं, जो सरकारी गोदामों में रखें अनाज पर पानी का छिड़काव कर अनाज को सड़ा दिया करते थे.

कुछ दूर आगे जाने पर लोमड़ दादा ने बताया कि यहाँ पर धूर्त मनुष्यों का समूह रहता है, जो सेवा और प्रेम की आड़ में पूरी दुनिया को अपने चंगुल में फंसाने के लिए धर्मान्तरण का घृणित काम करते थे. ये लोग मनलुभावन बातों के लिए जाने जाते थे. इनके झांसे में तुम्हें नहीं आना है.

अगले पड़ाव पर भारत के शिक्षा माफियाओं के लोग थे. जो पुस्तकों-कॉपियों-यूनिफार्म आदि के घृणित व्यापार को शिक्षा का नाम देकर विद्यार्थियों-अभिभावकों और शिक्षकों का शोषण करते रहे हैं. ये बड़े ही दुष्ट लोग हैं. बच्चों का बचपन नर्सरी और झूलाघर में ही नष्ट करने के लिए भ्रामक और लुभावने विज्ञापन देते हैं. बच्चों की अन्तर्निहित प्रतिभा को दो ढाई वर्ष की उम्र में ही रटन्त विद्या के जाल में फंसा कर नष्ट कर देते हैं. मूर्ख माता-पिताओं के कुछ प्रतिनिधि भी इसी क्षेत्र में सजा भोग रहे हैं. कागजी शिक्षण संस्थानों को प्रश्रय देने वाले राजनेता, कुलपति, शिक्षाविद आदि भी इसी नरक में पड़े हैं. जानबूझकर कर विद्यार्थियों को अनुत्तीर्ण करने वाले तथा घोस्ट फैकल्टी और उन्हें मान्य करने वाले भी यहीं पर हैं.

थोड़ा-सा ही आगे बढ़ें थे कि दादा ने बताया कि आगे भारत सहित विभिन्न देशों के स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े लोगों का अभयारण्य है. ये लोग अपनी संस्कृति से घृणा करते हैं. कुछ लोगों का कहना है कि घृणा तो नहीं करते हैं परन्तु जो चल रहा है, उसे चलने दो के सिद्धांत के अनुयायी हैं. अमेरिका आदि देशों में स्कूलों और कॉलेजों के कैंटीन में फास्टफूड तथा कोल्डड्रिंक बेचने की अनुमति नहीं है, परन्तु इनमें से जो भारतीय लोग हैं, उनकी लोगों की अनदेखी के कारण भारत के छोटे-छोटे सुदूर गाँवों तक में रोग पैदा करने वाला फास्टफूड पहुँच चुका है. उनके पाउचों से धरती माता भी त्राहिमाम करने लगी है परन्तु इन लोगों को इन बातों से कोई अन्तर नहीं पड़ता है. आरो पानी, माइक्रोवेव ओवन, रिफाइन्ड तेल, आदि अनेकों चीजें बिक रही हैं. परिणामस्वरूप कैंसर, डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हृदयरोग जैसी घातक बीमारियों से जनता त्राहिमाम कर रही है. मेडिकल एजुकेशन से जुड़े लोग भी पारंपरिक चिकित्सा और भारतीय स्वास्थ्य ज्ञान परम्परा के लाभों से भावी चिकित्सकों और आम नागरिकों को वंचित रखे हुए हैं. आउट डेटेड पाठ्यसामग्री के समर्थक भी यहीं थे. अनेक देशों में प्रतिबंधित दवाओं के भारत में प्रचलन के लिए जिम्मेदार भी इसी क्षेत्र में सजा भोग रहे थे. नकली दवाओं, नकली बीमारियों के माफिया तथा अस्पतालों में रोगियों को डराकर लूटने वाले भी इसी क्षेत्र में भगवान के कोप का शिकार बने हुए थे. ईश्वर ने उन्हें और उनकी संतानों को ऐसे ही रोगों का उपहार दिया है.

लोमड़ दादा ने बन्दर दादा से कहा कि चलो, आज के अन्तिम पड़ाव की तरफ जीप को बढाओ. वे बोलें कि अब हम एक अनूठे मुस्लिम संत वाजिद अली शाह के दर्शन करेंगे. उन्होंने एक बार एक हिरणी को मारने के लिए बाण चढ़ाया था और हिरणी की जीवन बचाने के लिए लगाई गई छलांग में उन्हें जीवन का दर्शन हुआ और उन्होंने अपने धनुष-बाण को तोड़कर परमात्मा की तलाश में दादू दयाल जैसे अनूठे संत की शरण ली. और उन्हें ईश्वर के दर्शन हो गए. एक बार जब एक बकरे को बलि के लिए ले जाया जा रहा था, तब बकरे के ह्रदय में उत्पन्न हुआ एक छंद उनके मुख से निकला, जो कि अनुपम है –
साहिब के दरबार पुकारया बाकरा.
काजी लिया जाय कमर सों पाकरा.
मेरा लिया सीस उसी का लीजिये.
हरि हाँ, वाजिद, राव रंक का न्याय बराबर कीजिए.
इसतरह वन्यजीवों की यह जंगल सफारी सम्पन्न हुई. सभी जीवों ने वचन दिया कि हम ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे हमें मनुष्य योनि में जन्म लेना पड़े.

डॉ. मनोहर भण्डारी