गर्मियों की छुट्टी
सब बच्चों की टोली और
हाथों में आमों की गुत्थियां,
नजर आ जाता है जब
आती गर्मियों की छुट्टियां,
एक वो समय था जब हम छोटे थे,
घरवालों की नजरों में सदा खोटे थे,
तब छुट्टियां होते दो महीने का,
मस्तियां हर जगह होती
फर्क नहीं नानी या अपना घर होने का,
पेड़ों की छांव में पूरा वक्त बिताते,
खेलना छोड़ तब कुछ नहीं भाते,
गर्मियों की छुट्टियां अब कितना सिमट गया,
प्रशासन लाता है अब कई सारे चोंचले नया,
टी वी मोबाईल समर कैंप,कौशल विकास,
रोक रहा नेचुरल विकास,
नन्हे दिमागों पर बोझ डालना कितना है सही,
क्या धूप और गर्मी का तनिक ख्याल नहीं,
खैर ग्रीष्म कालीन छुट्टियां लाता है उमंग,
बस छुट्टी ही छुट्टी बालमन में नहीं घमंड।
— राजेन्द्र लाहिरी