कविता

तीन कविताएँ

कहमुकरी

जीवन में वह रस को घोले
मिश्री जैसी बातें बोले
रूठे तो वह फेरे अँखियाँ
क्या सखि साजन
ना सखि सखियाँ ।।

त्रिवेणी
1-

क्या फर्क है कदमों में जमीं है कि फलक है
कहते है हर इक रात सवेरे की झलक है ।

अपने हिस्से का सूरज हथेली पर उगेगा ।।

2-

कई राहें अभी आसान होंगी
कि अपने आप से पहचान होंगी

बदगुमानियों के दाग समय धोयेगा ।

अतुकांत

अभी समय विरुद्ध है
ये राह भी अवरुद्ध है ।।
इंसान का इंसान से
मतभेद है या यूद्ध है ।।
पर सत्य प्रेम त्याग से
सिद्धार्थ बनता बुद्ध है ।।
तू जीतेगा तू जीतेगा
नियत अगर जो शुद्ध है ।।
भले कोई विरुद्ध हो
भले कोई विरुद्ध है ।।

— साधना सिंह

साधना सिंह

मै साधना सिंह, युपी के एक शहर गोरखपुर से हु । लिखने का शौक कॉलेज से ही था । मै किसी भी विधा से अनभिज्ञ हु बस अपने एहसास कागज पर उतार देती हु । कुछ पंक्तियो मे - छंदमुक्त हो या छंदबध मुझे क्या पता ये पंक्तिया बस एहसास है तुम्हारे होने का तुम्हे खोने का कोई एहसास जब जेहन मे संवरता है वही शब्द बन कर कागज पर निखरता है । धन्यवाद :)