कविता

तुझे अकेला ही चलना है,,,

जितना ज्यादा साथ निभाया ।।
उतना लोगों ने ठुकराया ।।
गैरों से सतर्क था हर पल,,
अपनों से ही धोका पाया ।।

ये दुनिया मतलब परस्त है,,
खुद में ही हर शख्स मस्त है !
बात समझ में तब ये आई,,
जब जीवन कुछ अस्त व्यस्त है!

कदम कदम सबने भरमाया!
सार समझ में तब ये आया!
तुझे अकेला ही चलना है
साथ न देता अपना साया!!

वाह रे ईश्वर तेरी माया !!
जिसको कोई समझ न पाया !!
कठपुतली सा खूब नचाया!!
रोज नया इक रंग दिखाया ।।

— समीर द्विवेदी नितान्त

समीर द्विवेदी नितान्त

कन्नौज, उत्तर प्रदेश