कविता
शेष शब्दों का भार
प्रतिध्वनि की पुकार
अंतरात्मा विह्वल हुई
सुनकर करुण चीत्कार
इंसान की प्रकृति वही
निष्क्रियता को न चाहे
मन का गुरूर अहंकार
वेदना का कैसा इजहार
धुरी पर चले आसमान
चाँद की जय जयकार
तारों की अठखेलियाँ
इश्क का लुप्त है संसार
दूर सघन सुंदर अहसास
धड़कनों से सजा कर देहरी
सजनी करे पी का इन्तजार
आह से वाह तक का अलंकार
— वर्षा वार्ष्णेय