भाषा-साहित्य

क्यों संदिग्ध है अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां ?

साहित्य किसी भी देश और समाज का दर्पण होता है। इस दर्पण को साफ़-सुथरा रखने का काम करती है वहां की साहित्य अकादमियां। लेकिन सोचिये क्या होगा? जब देश या राज्य का आईना सही से काम न कर रहा हो तो वहां की सरकार पर प्रश्न उठना स्वाभाविक है। जी हाँ, ऐसा ही कुछ हो रहा है देश के राज्यों की साहित्य अकादमियों में। किसी भी राज्य की साहित्य अकादमी के अध्यक्ष है होते हैं राज्य के मुख्यमंत्री। मुख्यमंत्री जिस संस्था के अध्यक्ष हो वही संस्था अगर सही से काम न करें तो बाकी संस्थाओं की स्थिति का अंदाज़ा आप लगा सकते है।

आज हम देखते हैं कि अधिकांश साहित्य और कला अकादमियों के मंच पर पुरस्कृत होने वाले लोगों में अधिकतर को कोई जानता भी नहीं है। यह सच है कि आज जितनी राजनीति में राजनीति है उससे अधिक राजनीति साहित्य और कलाओं में है। प्रेमचंद ने साहित्य को राजनीति के आगे जलने वाली मशाल कहा था। लेकिन देश भर में आज साहित्य राजनेताओं के पीछे चल रहा है। पिछले दशकों में हुए साहित्य, संस्कृति और भाषा के पतन का असर आगामी पीढ़ियों तक जाएगा। लेकिन किसे फिक्र है। राज्य अकादमी पुरस्कारों की वार्षिक गतिविधियां संदिग्ध है। जो कार्य एक वर्ष में पूर्ण होने चाहिए उनको करने में सालों लग रहें है। पुरस्कारों के लिए मूल्यांकन प्रक्रिया स्पष्ट और समयानुसार नहीं है। उदाहरण के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी के वार्षिक परिणामों की घोषणा का साल खत्म होने को है, मगर अभी तक नहीं हुई है। न ही आगामी साल का प्रपत्र जारी किया गया है। एक अकादमी के भीतर क्या- क्या खेल चलते है ? पारदर्शिता के अभाव में किसी को पता नहीं चलता।

वैसे कोई भी पुरस्कार या सम्मान उत्कृष्टता का पैमाना नहीं हो सकता। हिंदी भाषा में निराला, मुक्तिबोध, फणीश्वरनाथ रेणु, धर्मवीर भारती, राजेंद्र यादव, असगर वजाहत जैसे महत्वपूर्ण कवियों-लेखकों को भी साहित्य अकादमी पुरस्कार नहीं दिया गया और बहुत से ऐसे लेखकों को पुरस्कृत किया गया, जिन्हें कभी का भुलाया जा चुका है। इस बारे में विचार करना चाहिए और पुरस्कार की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाना चाहिए। आज जिस प्रकार से सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त करने के लिए कुछ योग्य एवं अयोग्य साहित्यकार, कवि, लेखक, कलाकार साम-दाम-दण्ड-भेद सब अपना रहे हैं और अपने प्रयासों में प्रायः सफल भी हो रहे हैं, उससे सम्मानों और पुरस्कारों के चयन की प्रक्रिया की विश्वसनीयता और पारदर्शिता पर प्रश्नचिन्ह लगना स्वाभाविक है। पुरस्कारों की दौड़ में साहित्य का भला नहीं हो सकता।

*पुरस्कारों की दौड़ में खोकर, भूल बैठे हैं सच्चा सृजन ।

लिख के वरिष्ठ रचनाकार, करते है वो झूठा अर्जन ।।

मस्तक तिलक लग जाए, और चाहे गले मे हार ।

बड़े बने ये साहित्यकार।।*

आज साहित्य और कला जगत में बहुत सी संस्थाएं काम कर रही है। जब मैं इन संस्थाओं की कार्यशेळी देखता हूँ या इनके समारोहों से जुडी कोई रिपोर्ट पढ़ता हूँ तो सामने आता है एक ही सच। और वो सच ये है कि किसी क्षेत्र विशेष या एक विचाधारा वाली संस्थाएं आपस में अग्रीमेंट करके आगे बढ़ रही है। ये एग्रीमेंट यूं होता है कि आप हमें सम्मानित करेंगे और हम आपको। और ये सिलसिला लगातार चल रहा है अखबारों और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरता है। खासकर ये ऐसी खबर शेयर भी खुद ही आपस में करते है। आम पाठक को इससे कोई ज्यादा लेना देना नहीं होता। अब बात करते है सरकारी संस्थाओं और पुरस्कारों की। इनकी सच्चाई किसी से छुपी नहीं। जिसकी जितनी मजबूत लाठी, उतना बड़ा तमगा। सिफारिशों के चौराहों से गुजरते ये पुरस्कार पता नहीं, किस को मिल जाये। किसी आवेदक को पता नहीं होता। इनकी बन्दर बाँट तो पहले से ही जगजाहिर है। ऐसे पुरस्कारों की विश्वसनीयता को लेकर देश भर में गंभीर आरोप लग रहे हैं। सच्चा रचनाकार इनके चक्कर में कम ही पड़ रहा है।

*अब चला हाशिये पे गया, सच्चा कर्मठ रचनाकार।

राजनीति के रंग जमाते, साहित्य के ये ठेकेदार।।

बेचे कौड़ी में कलम, हो कैसे साहित्यिक उद्धार।

बड़े बने ये साहित्यकार।।*

आज संस्थाएं एक दूजे की हो गयी है। एक दूसरे को सम्मानित करने और शॉल ओढ़ाने में लगी है। सरकारी पुरस्कार बन्दर बाँट कहे या लाठी का दम। जितनी जान-पहचान उतना बड़ा तमगा। ये प्रमाण पुरस्कार विजेताओं की प्रामाणिकता पर सवाल उठाते हैं। आज देशभर की साहित्य अकादमियां पद और पुरस्कारों की बंदर बांट करने में लगी है।अधिकांश अकादमियों के कामकाज को देखकर तो यही लगता है। जब तक विशेषज्ञता के क्षेत्र में राजनीतिक नियुक्तियां होती रहेगी तब तक ऐसी दुर्घटनाएं होती रहेगी। सिविल सेवा कमिशन और प्रदेशों की अकादमी में सदस्यों और अध्यक्षों की राजनीतिक नियुक्तियों ने इन संस्थाओं की विशेषज्ञता पर प्रश्न चिन्ह लगाए हैं। पिछले दशकों में पुरस्कारों की बंदर बांट कथित साहित्यकारों, कलाकारों और अपने लोगों को प्रस्तुत करने के लिए विशेष साहित्यकार, पुरोधा कलाकार, साहित्य ऋषि जैसी कई श्रेणियां बनी है। जिसके तहत विभिन्न अकादमियां एक दूसरे के अध्यक्षों को पुरस्कृत कर रही है और निर्णायकों को भी सम्मान दिलवा रही है। इन पुरस्कारों में पारदर्शिता का अभाव है। बिना साधना के कैसा साहित्य?

*देव-पूजन के संग जरूरी, मन की निश्छल आराधना।।

बिना दर्द का स्वाद चखे, न होती पल्लवित साधना।।

बिना साधना नहीं साहित्य, झूठा है वो रचनाकार।

बड़े बने ये साहित्यकार।।*

अब समय आ गया है कि देश की सभी राज्य अकादमियों को केंद्रीय साहित्य अकादमी की तरह सचमुच स्वायत बनाया जाए और इनका काम पूरी तरह से साहित्यकारों, कलाकारों को सौंपा जाए। किसी भी अकादमी के वार्षिक कार्यों की प्रगति समयानुसार और पूरी तरह पारदर्शी बनाने पर जोर देना होगा ताकि सच्चे साहित्यकारों का विश्वास उन पर बना रहे।

उदाहरण के लिए हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी के वार्षिक पुरस्कारों की घोषणा जिसका राज्य के साहित्यकार बेसब्री से इंतज़ार करते है, के वर्ष 2022 के परिणाम अभी 2024 में भी जारी नहीं हुए है। इससे आप अंदाज़ा लगा सकते है कि समाज को आईना दिखाने वाले किस क़द्र सोये पड़े है। हरियाणा हिंदी साहित्य अकादमी हर वर्ष 12 से अधिक साहित्यिक पुरस्कार जिसमें एक लाख से सात लाख तक की पुरस्कार राशि दी जाती है और श्रेष्ठ कृति के अंतर्गत पद्रह सौलह विधाओं में 31 -31 हज़ार रुपये की राशि सम्मान स्वरुप प्रदान करती है। इन पुरस्कारों के अलावा वर्ष भर की श्रेष्ठ पांडुलिपियों को चयनित कर उन्हें प्रकाशन अनुदान प्रदान करती है। लेकिन हरियाणा में सरकारी भर्तियों की तरह ये भी बड़ा दुखद है कि जो परिणाम अगस्त में घोषित होने थे; वो अगले साल कि जनवरी बीत जाने के बाद भी नहीं घोषित किये गए न ही साल 2023 का प्रपत्र जारी किया गया जिसमें आने वाले साल के लिए साहित्यकारों को आवेदन करना होता है; आखिर क्यों ?

उम्मीद है कि राज्य सरकारें अकादमियों के वर्तमान विवादास्पद कार्यों की जांच कराएगी और अकादमी में योग्य और प्रतिभाशाली लेखक, कलाकारों को नियुक्त करेगी। ताकि देश भर पर भाषा, साहित्य और संस्कृति नित नए आयाम गढ़ती रहे।

— डॉ. सत्यवान सौरभ

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: [email protected] सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh