गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

मुझे निराश कर गये हो खुश रहो
मुझे उदास कर गये हो खुश रहो

खुशी हुई कि तुम दिखे यहाँ अभी
हुये निडर , सँवर गये हो खुश रहो

लगी किसी की अब नज़र तुम्हें दिखी
उतार तुम नज़र गये हो खुश रहो

दुआ करें सलामती की हम सदा
अभी चले शहर गये हो खुश रहो

न हो तुम बेवफ़ा किसी तरह सुनो
वफ़ा उसी से कर गये हो खुश रहो

न बात मानते कभी सुनो मिरी
अभी भी फिर मुकर गया हो खुश रहो

नसीब था कि पा गये तुम्हें हमीं
मिले ज़रा सुधर गये हो खुश रहो

हम हुये फ़िदा तुम्हीं पर जब मिले
चले उसी डगर गये हो खुश रहो

दिखे उसी समय मिला करार था
सुनो न कर असर गये हो खुश रहो

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’