गौरैया की संवेदनशीलता
तुम्हारे और मेरे बीच में,
जरुर इक रिश्ता है।
तुम्हारी संवेदनशीलता
से मैं भी क्रियान्वित
हो जाती हूं।
तुम्हारी संवेदना इक
सन्देश दे जाती है
तिनकों की कीमत
कोई तुम से सीखे,
तुम्हारी चहचहाहट
बच्चों की चींचीं चूं-चूं,
मन को मोहित कर
जाती है।
तुम्हारी चंचलता से
इक सबक मिल जाता है।
कितने आंधी तूफ़ान से
तुम गुज़र जाती हो।
तुम मेरे अतीत और वर्तमान
की संवेदनशीलता की
कड़ी हो।
जैसे कृष्ण और अर्जुन
के संवाद जैसी सार्थकता
निःस्वार्थ प्रेम की जैसे
राधा कृष्ण का प्रणय
भरा हो।
तुम्हारा काॅलेज की खिड़की में,
रोज़ एक सन्देश दे जाना
जैसे मुझे समझा रही हो।
काश तुम्हारी वेदना की
संवेदना ये बच्चे
समझ पाते।
तो शायद निःस्वार्थ
उड़ान भर पाते।
तुम मेरे अतीत के पन्नों,
का साक्षात्कार हो।
तुम्हें यूं हर रोज़ समझ पाना,
खुद को महसूस करना
तुम मेरे जीवन का वो
चलचित्र हो।
जो मुझे संघर्ष से उभरना
सिखाती है,
तुम्हारी तिलमिलाहट
चहचहाकर शब्दों की
ब्याख्या कर जाती है।
हे! सखी तुम मेरे
जीवन का सार हो।
संघर्ष की इन रेखाओं,
का शब्द भेदी आधार हो।
— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ “सहजा”