कविता

बरसो न बादल 

घनघोर बादल 

कहां हो?

मानव दानव के लिए न सही

पर इस धारा के लिए सही 

सब की प्यास 

बुझा दो।

तप्त ऊष्मा से

मुझरा रही जो 

प्रकृति रूपसी 

उसको जरा

अपने सीतल स्पर्श से 

सहला दो।

जीव जंतुओं के 

सुख रहे जो कंठ

सूर्य की तप्त किरणों से 

उनको जरा 

अपने नभ के 

शीतल जल से 

तृप्त कर दो।

— डॉ. राजीव डोगरा

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- Rajivdogra1@gmail.com M- 9876777233