कविता

वक्त फिर आएगा…” 

गुज़रकर जो चला गया वक्त
बहती हुई नदियों की तरह
एक रफ्तार से
तीव्र वेग से
गुज़र जाता है…!

हर बात क्षणिक जैसा
क्षण भंगुर जैसा…,
मानो…,
आंखें मूंदते ही
गायब हो जाता है
आंखों के सामने ही
अपनी अस्तित्व…!

दुख तो होता ही है
यह सत्य है
दुख होता है…!

जब…,
ताश के महलों की तरह
धड़ाम से धम्म से
गिर जाता है
बनी बनाई संबंध…!

परंतु…,
प्रतीक्षा करना होगा
वक्त फिर आएगा
वक्त फिर वापस आएगा…!

— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

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