उफ्! ये प्रचंड गर्मी
सूर्य प्रचंडता की बढ़ी उच्च डिग्री
लू लपेट संग लग रही गर्मी ।
पेड़ो से गुम हो गई है छांव
मानों अब हमारी नैय्या डिगरी ।।
चल रहे हैं बेमौसम चक्रवात
आंधी – तूफान , कही बरसात।
पंछी करें किलोल कहां हैं छांव
ढूंढते शीतलता वाले दिन-रात ।।
ग्लोबल वार्मिंग को समझों
घर – आंगन में पौधे लगाओ ।
गर्म लपटे कर रही है इशारा
जीवन अनमोल ज़रा संभलों ।।
लेकर निकले गमछा – छतरी
बाहर आग उगल रही दुपहरी ।
पिए शीतल-पेय , आम पना
गर्मी में अमृततुल्य ईख रसवंती ।।
— गोपाल कौशल भोजवाल