कविता

उफ्! ये प्रचंड गर्मी

सूर्य प्रचंडता की बढ़ी उच्च डिग्री 

लू लपेट संग  लग  रही   गर्मी ।

पेड़ो  से  गुम  हो  गई  है छांव

मानों अब हमारी नैय्या डिगरी ।। 

चल रहे  हैं  बेमौसम चक्रवात

आंधी – तूफान , कही बरसात।

पंछी करें किलोल कहां हैं छांव

ढूंढते शीतलता  वाले दिन-रात ।।

ग्लोबल वार्मिंग  को  समझों 

घर – आंगन में पौधे लगाओ ।

गर्म लपटे कर रही है इशारा 

जीवन अनमोल ज़रा संभलों ।।

लेकर निकले गमछा – छतरी

बाहर आग उगल रही दुपहरी ।

पिए  शीतल-पेय , आम पना

गर्मी में अमृततुल्य ईख रसवंती ।।

— गोपाल कौशल भोजवाल 

गोपाल कौशल "भोजवाल"

नागदा जिला धार मध्यप्रदेश 99814-67300