गीतिका/ग़ज़ल

न चाह कोई न राह कोई

रोशन गलियां सारी हैं, फिर भी कोई अंधेरा
जो राह दिखाये जीने की, रहनुमा वही लुटेरा

ऐसे रात सिमट जाती, बेनूर बहुत महताब यहाँ
शबनम नही बिखरती है, अब होता नही सवेरा

है सूनी शज़र परीदों से, दरख़्त यहाँ सैय्याद बने
फ़िजा संग खिज़ा यहाँ रहती, है बाग बहुत घनेरा

एतबार यहाँ पर जख्मी है, उठा यहाँ से भरोसा
खानाबदोसों की महफ़िल ये, बदलता इनका डेरा

न चाह कोई न राह कोई, फरेबी नजर नजारे हैं
गाज़ा महज दिखावा है, “राज” भरा है इनका फेरा

राजकुमार तिवारी “राज”
बाराबंकी यू० पी०

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782