वन के दोहे
वन जब तक,तब तक यहाँ,हवा मिलेगी ख़ूब।
वरना हम सब पीर में,जाएँगे नित डूब।।
वन का रहना है हमें,सुख का नव संसार।
रहे सुखद परिवेश तब,जीवन का आधार।।
वन हरियाली,चेतना,देता जो उल्लास।
मिलती हैं साँसें हमें, सतत् मिले नव आस।।
मिलतीं औषधियाँ हमें,वन-उपजें भी ख़ूब।
जीवों का विचरण वहाँ,उगती कोमल दूब।।
वन तो खुशियों को रचे,लाता मंगल गान।
करता वन जीना सदा,बेहद ही आसान।।
वन में मंगल हो रहा, खुशियों का पैग़ाम।
वन ने ही जग को दिए,नवल-धवल आयाम।।
वन से रौनक,पर्यटन,नैसर्गिक शुभगान।
फल,पत्ते हैं पेड़ सब,उपयोगी सामान।।
वन से ही है प्रकृति नव,वन से ही वनराज।
धर्म रचे वन में गए,हर्षित हुआ समाज।।
वन से ही लकड़ी मिले,पौराणिक इतिहास।
तपसी जीवन वन रचें,अधरों पर नव हास।।
पर्यावरण सुधारना,वन का चोखा काम।
जीवन की गतिशीलता,है देवों का धाम।।
— प्रो (डॉ) शरद नारायण खरे