ग़ज़ल
किये आग़ाज़ जो सच की हिफ़ाज़त की लड़ाई से
मुसलसल लिख रहे हैं झूठ ज़र की रोशनाई से
रियाया हर दफ़ा हर झूठ को सच मान लेती है
अजी वो बोलता है झूठ भी इतनी सफ़ाई से
कमाते थे सुकूं से प्यार से दो वक्त की रोटी
लुटेरे ही भले थे डाकुओं की रहनुमाई से
बढ़ी ये मज़हबी नफ़रत सियासत कम करेगी क्यूँ
उसे तो फ़ायदा ही फ़ायदा है इस लड़ाई से
कमाओ साथ दौलत के दुआएं, ये दुआएं ही
शिफ़ा देंगी असर होगा नही जब जब दवाई से
सभी की आँख में ठहरा हुआ है दर्द का पानी
यहाँ पर कौन है आहत नही जो बेवफाई से
बिना अहसास के पत्थर दिलों से मत उलझ बंसल
किसे हासिल हुआ है क्या बुतों से सर ख़पाई से
— सतीश बंसल