जीवन क्या है
कुछ खोकर कुछ पाकर जाना, जीवन क्या है
दु:ख से हाथ मिलाकर जाना, जीवन क्या है
चलते – चलते शाम हो गई राहों में ही
मंजिल को ठुकरा कर जाना,जीवन क्या है
जिसकी छाया को छू लेना भी वर्जित था
उस छाया को छू कर जाना, जीवन क्या है
हम थे मालामाल आंसुओं से हरदम ही
इन को मगर लुटा कर जाना, जीवन क्या है
दु:ख के कितने तहखाने थे मन के अंदर
उनमें आज उतर कर जाना,जीवन क्या है
कोई मेरे भीतर जैसे धुन में गाए
उस धुन को गा – गा कर जाना, जीवन क्या है
यादें बिखरी थीं सुख-दुख की जिन गलियों में
उन गलियों से होकर जाना, जीवन क्या है
— डॉ. ओम निश्चल