कविता

मुझे भी पेंशन लगवा दो जी

नौकरी पाने के लिए कितने पापड़ हैं बेलने पड़ते

नौकरी पाते पाते सिर के बाल हैं सब झड़ते

सारी सारी रात करते हैं परीक्षा की तैयारी

थक गए अब तो किस्मत से लड़ते लड़ते

मेरा भी भाग्य जगा दो जी

मुझे भी पेंशन लगवा दो जी

उम्र भर किताबों में डूबे रहे मेहनत से की पढ़ाई

अम्मा बापू की सारी कमाई पढ़ाई में लगाई

पढ़ने लिखने के बाद जब डिग्री हाथ में आई

ऐसा लगा जैसे माउंट एब्रेस्ट पर फतह है पाई

मुझे भी नौकरी दिला दो जी

मुझे भी पेंशन लगवा दो जी

नेता हो गए बहुत ज़रूरी देश पर हैं शाशन करते

पढ़े लिखे तो इनके आगे सुबह से शाम तक पानी भरते

इनको सब सुविधाएं मिलती पेंशन भी है लग जाती

नौकरी वाले पेंशन के लिए मर जाते हैं लड़ते लड़ते

मुझे भी नेता बना दो जी

मुझे भी पेंशन लगवा दो जी

बाल बच्चे अब बड़े हो गए कैसे करें गुज़ारा

नौकरी की उम्मीद में जीवन कट गया सारा

डिग्री हाथ में लिए फिरता है मारा मारा

कोई नहीं सुनता अब तो ऊपरवाले का ही है सहारा

मेरी भी किस्मत जगा दो जी

मुझे भी पेंशन लगवा दो जी

— रवींद्र कुमार शर्मा

*रवींद्र कुमार शर्मा

घुमारवीं जिला बिलासपुर हि प्र