मुक्तक/दोहा

आरक्षण

सुलगते सवाल हैं, जवाब नही कोई,
सत्ता के खेल में, अपवाद नही कोई।
प्रतिभाओं का जौहर, आरक्षण खेल में,
अन्धे बतलाते अब, आगे राह नही कोई।

नाकाराओं के दम पर, विकास की बातें,
चोर उचक्कों के दम पर, सुरक्षा की बातें।
योग्यता की बलि, आरक्षण के नाम पर,
गधों को शीर्ष, जाति जनगणना की बातें।

अब जंगल के राजा गीदड़ बनाये जायेंगे,
संख्या बल आधार, क़ब्ज़े कराये जायेंगे।
जंगल की सरहद, सुरक्षा में ख़रगोश तत्पर,
विकास के मापदंड, बन्दर बतायें जायेंगे।

किसने बकरी को मारा, भेड़िये जाँच करेंगे,
ख़रगोश की मौत पर, शेर सियासत करेंगे।
शेर बाघ भेड़ियों के, सब अधिकार छीनेंगे,
नख दाँत विहीन पशु, जंगल पर राज करेंगे।

— डॉ. अ. कीर्तिवर्धन