बाल कविता

बाल कविता – घड़ा मिट्टी का

घड़ा बना हूँ मैं मिट्टी का,    आता सबके काम।

जैसे गर्मी बढ़ती जाती,             सभी पुकारे नाम।।

भरे नीर सब मेरे भीतर,           रखकर मुझसे आस।

मानव तन को शीतल करता,            और बुझाता प्यास।।

दर्द सहन कितना मैं करता,              देह झुलसती आग।

उस पल ऐसा लगता बच्चों,              जल्दी जाऊंँ भाग।।

 माटी से मैं पैदा होता,                 माटी में ही अंत।

जात–पात ना मुझमें देखें,               असंत हो या संत।।

जीवन में ऐसा कर जाओ,           करें सभी स्वीकार।

द्वेष कपट की त्याग भावना,          मिले जगत में प्यार।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]