कविता

रुकिये, देखिये, जाइये

जब भी रेलवे फाटक के पास जाते हैं
तो सबसे पहले रुकते हैं,
फिर इधर उधर देखते हैं,
तब कहीं जाकर इत्मीनान से
फाटक पार करते हैं,
पर इस नियम का
वंचित तबकों के जीवन में
सकारात्मक बदलाव के लिए
प्रयोग कर सकते हैं,
हमें हड़बड़ी में बहकावे में आकर
किसी के बताये बातों पर
यकीन नहीं करने चाहिए,
उस पर गंभीरता पूर्वक विचार कर
किसी ठोस निर्णय पर पहुंचना चाहिए,
कही सुनी बातों पर आकर ही हमने
बहुत धोखे खाये हैं,
यात्रा किये, माथा टेके,
व रात दिन गुनगुनाए हैं,
पर मिला क्या समय और पैसे की बर्बादी,
छीन जाती है मानसिक आजादी,
किसी राह पर जाना ही है तो
क्यों न उन राहों पर चलें
जो समय समय पर हमारे महापुरुषों ने बताए हैं,
सद्कर्म का मार्ग दिखाए हैं,
तो साथियों रुकिये,देखिये तब जाइये।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554