गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

टूट कर कल को बिखरने के लिए।
फूल खिलतें हैं महकने के लिए।

एक पल भी होश खोते ही नहीं,
हम कहाँ पीते बहकने के लिए।

आशियां बनकर हुआ तैयार फिर,
आँधियां बेताब चलने के लिए।

ताप सहलो धूपका कुछ देर और,
अब्र आ पहुँचे बरसने के लिए।

आ गया तूफ़ान फिर से देख लो,
पेड़ जब तैयार फलने के लिए।

देखकर मज़बूत सीना लोग कुछ,
मूँग हैं तै यार दलने के लिए।

— हमीद कानपुरी

*हमीद कानपुरी

पूरा नाम - अब्दुल हमीद इदरीसी वरिष्ठ प्रबन्धक, सेवानिवृत पंजाब नेशनल बैंक 179, मीरपुर. कैण्ट,कानपुर - 208004 ईमेल - [email protected] मो. 9795772415