गीत/नवगीत

गीत — प्रेम

गुज़ारें प्रेम से जीवन,नफ़रती सोच को छोड़ें।
हम अपने सोच की शैली अभी से,आज से मोड़ें।।

अँधियारे को रोककर,सद्भावों का गान करें।
मानव बनकर मानवता का नित ही हम सम्मान करें।।
अपनेपन की बाँहें डालें ,नव चेतन मुस्काए।
दुनिया में बस अच्छे लोगों को ही हम अपनाएँ।।
जो दीवारें खड़ी बीच में आज गिरा दें।
अपने जीवन की शैली को आज फिरा दें।।

लड़ें नहिं,मत ही झगड़ें,कुछ भी नहीं मिलेगा।
किंचित नहीं नेह के आँगन में फिर फूल खिलेगा।।
देखें हम पीछे मुड़कर के,क्या-क्या नहीं गँवाया।
तुमने नहिं,नहिं मैंने लड़कर कुछ भी तो है पाया ।।
जो फैलाती हैं कटुता ताक़तें,उनको तो छोड़ें।।
गुज़ारें प्रेम से जीवन,नफ़रती सोच को छोड़ें।
हम अपने सोच की शैली अभी से,आज से मोड़ें।।

— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल[email protected]