दोहे – नेता और कुर्सी
नेता कुर्सी पर लदा,सुख का करता भोग।
नेता जन के तंत्र का,बहुत बड़ा है रोग।।
नेता से वादे झरें,बाहर आता झूठ।
खड़ा हुआ है नीति का,केवल अब तो ठूँठ।।
नेता नाटक नित करे,बने संत का बाप।
छिनती कुर्सी तब “शरद”,छिन जाता सब ताप।।
नेता लोभी,स्वार्थमय,कपटी अरु चालाक।
नहीं कभी चिंता करे,कट जाए यदि नाक।।
नेता होता निम्न नित,नहीं कभी परवाह।
नेता की करनी सुनो,तो निकलेगी आह।।
नेता पापों से घिरा,घोटालों में मस्त।
राजनीति तो हो गई,उससे अब तो पस्त।।
नेता करे प्रपंच नित,पाने को नित वोट।
जनहित पर नित मारता,बिन सोचे ही चोट।।
नेता तो अभिशाप है, नेता नित्य कलंक।
मार रहा जनतंत्र पर,जो धीरे से डंक।।
— प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे