कविता

भाई की गरिमा न गिराइए

चलिए एक और दिवस मनाते हैंभाई दिवस की औपचारिकता निभाते हैं,वैसे भी औपचारिकता निभाने मेंहमें पहले से ही महारत हासिल हैं।आज भाई का मतलब भी बदलता जा रहा हैकितने भाई आज भाई कहलाने लायक बचे हैंभाई ही भाई के सबसे बड़े दुश्मन हो रहे हैंभाई के रिश्ते भी आज औपचारिक हो रहे हैं,भाई की नई परिभाषा गढ़ रहे हैं।अपवादों की आड़ में मुँह न छिपाइएभाई का मतलब क्या होता है जनाबइसकी तह में एक बार फिर उतर कर आइएफिर भाई का मतलब हमको समझाइए,हमें न भी समझाइए तो भी चलेगाखुद ही समझकर खुद पर एहसान जताइए।भाई का मान सम्मान गिराने के बजायउसका स्वाभिमान वापस लौटाइएफिर भाई कहिए और भाई कहलाइए।भाई मान, सम्मान, ताकत, रक्षक, आवरणऔर एक मजबूत स्तंभ होता है,इस स्तंभ की नींव को और खोखला न कीजिएभाई दिवस मनाइए या न मनाइएपर आप भी भाई हैं, यह तो न भूल जाइए,भाई की गरिमा अब और न गिराइएएक बार फिर से वास्तव में भाई बन जाइए,भाई हैं तो इस रिश्ते की लाज भी बचाइए।

*सुधीर श्रीवास्तव

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