कविता

मत कर उम्मीद

इंसानों से इंसानियत की मत कर उम्मीद,
स्वार्थ के खातिर करे अपना ही मिट्टी पलीद,
थोथी बातें की जाती है नैतिकता की,
दम निकाल रख देते हैं जागरुकता की,
सच बोलने के लिए दूसरों को कहा जाता है,
बिना झूठ बोले नहीं रहा जाता है,
मजा आता है लोगों को चोरी में,
नहीं है कोई पीछे सीनाजोरी में,
सफाई का महत्व पशु पक्षी बता रहे,
मानवों को छोड़ जानवर इंसानियत जता रहे,
आज भी दुनिया वही है,
सारे जीव अपने कार्यों में सही है,
पर दोगलाई सिर्फ इंसान खींच रहा,
कुकर्मों से अनैतिकता को सींच रहा,
झूठे ही जमाने में छा रहे,
अवैज्ञानिकता की ओर सब पगलाये जा रहे,
गरीब जिंदगी से त्रस्त है,
अमीर पत्थरों को सजाने में व्यस्त है,
नहीं परवाह किसी को किसी की,
याद नहीं आ रहा
कब किसके होठों पर हंसी थी,
निर्धन आस व उम्मीद पर जी रहे,
धनवान उसका ही लहू पी रहे,
आज कहां है इंसान और कहां है इंसानियत,
मत कर उम्मीद किसी में नहीं अच्छी नीयत।

— राजेन्द्र लाहिरी

राजेन्द्र लाहिरी

पामगढ़, जिला जांजगीर चाम्पा, छ. ग.495554