राम से जुड़ा हर कण विशेष है
सामाजिक, पारिवारिक एवं सांस्कृतिक सतत अनैच्छिक अवमूल्यन के दौर में ‘राम ही आधार’ पर मन एवं मनोरथ दोनों अटक जाते हैं। राम के बिना कोई अन्य टिकाऊ आलम्ब नहीं…। राम ही क्यों? कौन राम? निर्गुण राम या सगुण राम? शिवभक्त राम या शिव स्वामी राम? रामराज्य के राम या वनवासी राम? ……ऐसे अनेक सवाल हो सकते हैं किंतु जवाब बस एक है- ‘राम’।
राम को लेकर विविध भाषाओं में विरचित महाकाव्य, खंडकाव्य, लेख, कथा, कहानी, नाटक एवं कविताएं लाखों हैं और आगे भी लेखन होता रहेगा। इस एकमात्र कारण है- राम का हर रूप में उच्चासीन होना, विशेष होना, अनुकरणीय होना, राममय होना…। ऐसे एकल राम से किसी भी रूप में पल भर के लिए भी जुड़ पाना विशेष हो जाता है, अक्षय हो जाता है, मुक्तिगामी हो जाता है। “राम ही आधार” की लेखिका ऋतु डागा जी ने राम से जुड़े विविध लेखन, किंवदंती, जनश्रुति, मिथक एवं क्षेपक के मूल में उतरकर लगभग 30 पात्रों का परिचय एवं उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला है।
एक वैश्विक आदर्श के रूप में प्रतिस्थापित राम “राम ही आधार” के केंद्र में हैं और अन्य प्रमुख पात्र उनके माध्यम से प्रतिष्ठित हो जाते हैं। ये वही पात्र हैं जो साहित्यिक प्रतिमान या भक्ति प्रवाह में प्रायः छूट जाते हैं। 180 पृष्ठीय इस पुस्तक में ‘कुम्भकर्ण’, ‘युवराज अंगद’, ‘रावण-मंदोदरी का अंतिम संवाद’ तथा ‘श्रीराम की अग्निपरीक्षा’ विशेष आकर्षण हैं। लेखिका का सूक्ष्म अवलोकन एवं तार्किक विश्लेषण स्वयमेव ही प्रशंसनीय हो जाता है। श्रीराम और उनसे जुड़े पात्रों की मर्यादा पर सदियों से उठाये जाने वाले ओछे सवालों का समुचित जवाब है यह पुस्तक। संदर्भ प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित 350/- रुपये मूल्य की ऋतु डागा कृत “राम ही आधार” हर आयु वर्ग के लिए न केवल पठनीय है अपितु प्रेरणादायक भी है।
— डॉ अवधेश कुमार अवध