कविता

सरी, तटिनी, पयस्विनी

नहीं है ख्वाहिश की दरिया से जा मिलूँ अभी 

लोगों की प्यास बुझे कुछ और बहुँ मैं अभी।

फेंक दे मनु उत्कंठा और वेदना इस बहाव में

रुको मत बस बढ़े चलो क्या रखा है ठहराव में।

विसर्जित कर दो सारी गंदगी मुझे नहीं है मलाल 

फ़ेंक दो द्वेष विकार और करो तुम कुछ कमाल। 

जीवन तुझको मिले सदियों से बहती आई हूँ 

चट्टानों से गिरती पड़ती फिर भी मुस्काई हूँ।

स्वार्थ तज कर भी औरों के लिए जीना होगा 

तटिनी का तो काम है उसे सिर्फ बहना होगा।

थोड़ी देर और बहुँ  फिर सागर से जा मिलूँ 

प्यासे  तकते होंगे उन्हें भी तो जीवन दे दूँ।  

दरिया से जाकर मिलना ही मेरा है ये धर्म 

बहा ले जाऊँ तेरी सारी पीड़ा ये भी है कर्म

मैं नदी हूँ बहती रहती अविरल कल कल 

धो लो अपने  सारे मैल रहो तुम भी विमल निर्मल

— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - [email protected]