आप सेहत, शान्ती, स्वास्थ्य, और वातावरण नही खरीद सकते हैं
वर्तमान समय में बडी प्रचंडता के साथ उठने लगी हैं सूर्य की ज्वालाएं! भले ही ये ज्वालाएं मुनष्य के लिये कष्टकारी साबित हो रही हों किन्तु समय अपने हिसाब से ही चल रहा है मौसम की हर गतिविधि पृथ्वी के लिये हानिकारक नही होती है भले ही हमें महसूस हो रहा हो कि यह समय बहुत ही कष्टदायी है किन्तु समय तुम्हारे हिसाब से चलने वाला नही है बल्कि तुमको समय के अनुसार चलना और ढलना होगा। साथ में यह भी समझना होगा कि हम पृथ्वी पर किस लिये आयें हैं और अपने दायित्वों का निर्वहन कितना ? और किस प्रकार कर रहें हैं ? जबकि एक सूर्य है जिसके प्रकाश से ब्रम्हाण्ड के आठ ग्रह प्रभावित और रोशन हो रहे हैं उसमें से एक अपनी पृथ्वी है जो सूर्य के प्रभाव से विकसित भी होती है और विचलित भी होती है, आज पूरी पृथ्वी के लोग सूर्य की प्रचंडता से तिलमिला रहे हैं जबकि इस धरती पर कुछ पेंड़ पौधों पर नजर डालें तो ये ज्वालाएं हमें शान्ती भी प्रदान कर सकती हैं जब इनका सही से उपयोग करना हम सीख जायेंगे! आप सभी ने पलास, गुलमोहर और अम्बलताश के फूल तो देखे ही होंगे यही नही इसी प्रकार के तमाम ऐसे फूलों के बृक्ष हैं जो सूर्य की तेज ज्वालाएं आने पर ही ये खिल कर अपने पूरे शबाब पर होते हैं इसी प्रकार जब हम सूर्य की ऊर्जा का सही उपयोग करना सीख जायेंगें तब सूर्य से उठने वाली तेज ज्वालाओं से भी हम बहुत कुछ हांसिल कर सकतें हैं क्योंकि इन दिनों हमारी पृथ्वी की हर ऊर्जा बहुत तीव्र होती है और सूर्य के बहुत नजदीक होती है! बस जरूरत है उसे अपने अंदर ग्रहण करनें की और कुछ हांसिल कर पलाश, गुलमोहर अम्बलताश की तरह खिलने की और निखरने की इसकी के साथ आसान भाषा में यदि कहा जाये तो जैसे अच्छी बरसात होने पर हमारी फसल की पैदावार बहुत अच्छी होती है उसी प्रकार सूर्य की तेज किरणों से हमारे पौधे प्रकाश संस्लेष्ण की क्रिया बहुत अच्छी एवं बेहतर होती है जो बाद में हमारे जीवन में बहुत सहायक सिद्ध होती है क्योंकि अनाज हमारा पेट भरता है तो प्रकाश संस्लेष्ण से प्राप्त वायु प्राण बचाने में सहायक होती है। अध्यात्मिक दृष्टि से भी यदि सूर्य के तापमान को देखा जाये तो इन दिनों नौ ग्रहों में सबसे उच्च स्थान पर पदस्थ सूर्य हमारी पृथ्वी के भू भाग के बहुत पास आ जाते हैं इन दिनों पृथ्वी और सूर्य का चुम्बकीय आकार्षण अत्याधिक बढ़ जाता है, साधक इन दिनों में अपनी साधना के दम पर बहुत कुछ हांसिल कर लेते हैं किन्तु उन लोगों को न हम देख पातें हैं और न ही उन से मिल पाते हैं।
आपने कभी यह सोंचा है कि इस पृथ्वी को कौन घुमा रहा है! यदि यह पृथ्वी अपने आप घूमती तो कितने दिनों तक घूमती! हमारी पृथ्वी पर सब कुछ बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रहा है यदि कुछ अव्यवस्थित है तो पृथ्वी पर निवास करने वाला मानव है जो आये दिन पृथ्वी का संतुलन बिगाड़ने में रातो दिन प्रयासरत रहता है उसके बाद दोष प्रकृति को देता है, यदि आज वायुमण्डल में आपको शुद्ध वायु नही मिल रही है तो इसमें किसका दोष है ? यदि आज सभी को तेज धूप की मार झेलनी पड़ रही है तो इसमें किसका दोष है ? सही समय पर मानसून नही आ रहा व समुचित मात्रा में बरसात नही हो रही हैं तो इसमे किसका दोष है ? अब जरा अपने मतिष्क पर जोर डालो और सोंचो की मैंने अपने पूरे जीवन काल में धरती का श्रृगार करने एवं अपने लिये प्रांणदायिनी वायु प्राप्त करने के लिये कितने पेंड़ पौधे लगाये हैं साथ में इस पर भी एक नजर डाल लिया जाये कि अपने जीवन में अब तक हम प्लास्टिक एवं प्रदूषण को बढाया देने वाले कचरे को कितना मिट्टी में मिला चुके हैं, जब धरती पर शौलाब आ जाये तो परेशानी! जब धरती पर ठंन्डी जवां होकर अंगडाई ले तो परेशानी! जब सूर्य अपने शबाब में मस्त फिरने लगे तो परेशानी! और आज हम! नदियों को दूषित करते रहें ? कोई रोकने टोकने वाला नही! आज हम वायु प्रदूषण फैला रहें हैं ? कोई चिंता नही! आज हम हर रोज बेखौफ होकर हरियाली पर आरा चला रहें ? कोई परवाह नही! हम धरती पर ताण्डव करें तो वह विकास कार्य है तब प्रकृति धरती की व्यवस्था बनाये रखने के लिये प्रयास करे तो वह विनाश लगने लगता है अरे भाई एकतरफा इश्क बहुत कष्टदायी होता है इसलिये हमें वह सब कुछ परमात्मा ने पहले से ही दे रखा है जो धरती पर रहने वाले जानवरों के पास नही है हमें चाहिए हम उस अदृष्य शक्ति से सम्बन्ध मधुर रखें और उससे इजहार करना सीखें साथ ही उसकी सेहत का भी ख्याल रखें तभी तो हमारा इश्क पूरा होगा जब आप प्रकृति से वफाई चाह रहे हैं तो आपको भी उसके प्रति वफादार बनना पड़ेगा नही तो ऐसे ही घुट घुट कर जीना पड़ेगा और एक दिन बे मौत मरना पड़ेगा।
कभी इस ओर ध्यान दिया है कि चिलचिलाती धूप और चलती हुयी लू में भी ये पेंड़ क्यों झूमते रहते हैं ? क्योंकि इन्हे सर्यू की ऊर्जाओं का सही उपयोग करना मालूम हैं और यही इनके लिसे सुनहरा अवसर होता है जो धरती पर निवास कर रहें प्राणियों के लिये कुछ अच्छा कर रहे होते हैं हमारे लगाये हुये बृक्षो को धूप जितना अधिक मिलेगी ये पौधे हमारे लिये उतना अधिक प्राणदायिनी वायु का विस्तार कर सकेंगे जिसे हम सभी विज्ञान की भाषा में आक्सीजन कहते हैं और इस आक्सीजन की उपयोगिता वही इंसान बेहतर ढंग से जातना है जो अस्पताल से आक्सीजन का मूल्य चुका कर आया हो वही इस प्रकृति की अनमोल संपदा की कीमत जानता है, अगर आज का मानव अपनी उलूल जुलूल हरकतों से बाज नही आया तो एक दिन ओ जरूर आ जायेगा कि हर कोई अपनी जान बचाने के लिये कृत्रिम रूप से तैयार की गयी आक्सीजन गैस का सिलेण्डर लेकर चलेगा ! और कितने दिनों तक चलेगा ? पैसों से जीवन को सरल बना सकतें है इससे आप सेहत, शान्ती, स्वास्थ्य, और वातावरण नही खरीद सकते हैं। हमें स्वयं एक जिम्मेंदार इंसान होने का कर्तव्य निभाना है अगर हम शासन और प्रशासन के भरोसे रहे तो एक दिन पूरी धरती वीरान हो जायेगी क्योंकि हर विभाग हरियाली के साथ भद्दे से भद्दा मजाक करता नजर आ रहा है बरसात आने से पहले राजस्व विभाग, वन विभाग, पंचायतीराज विभाग एवं इनके साथ अन्य विभाग भी वृक्षारोपण की जमकर खिल्ली उड़ाते देखे जाते हैं पौधा एक होता है उस पर फोटो खिचवाने वाले लोग एक दर्जन होते हैं और पौध रोपण का एक बहुत बड़ा ढिंढोरा पीटा जाता है साथ ही लाखों खर्च भी किये जाते हैं नतीजा क्या निकलता है ? 4 माह बाद वह पौधे किस हाल में हैं इनकी सुध लेने वाला कोई है ? ये विभाग पर्यावरण को मजबूत करने का सिर्फ दिखावा करते है जबकि दूसरे वर्ष फिर से बृक्षारोपण करने से पहले बीते वर्ष किये गये बृक्षारोपण की समीक्षा नही की जाती है और कागज पर सिर्फ जंगल उगा दिये जाते हैं जबकि वास्तविकता कुछ और ही नजर आ रही है जबकि वन विभाग वालों को चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए कि एक वर्ष में पेंड काटने के लिये जितनी अनुमति दे दी है क्या वास्तव में पिछले वर्ष लगाये उतने हमारे बृक्ष तैयार हो गये हैं।
राजकुमार तिवारी ‘‘राज’’
बाराबंकी उ0प्र0