लघुकथा : लालच
राजेन्द्र और रोहिणी के बीच तलाक हुए दस बरस बीत गये। गौरव की परवरिश राजेन्द्र ने किया। गीतिका रोहिणी के पास पली-बढ़ी। राजेन्द्र ने गौरव के वास्ते दूसरी शादी नहीं की। रोहिणी ने अपना दूसरा घर बसा लिया। उसे जयेश से एक और बेटी सुनंदा मिली।
इसी बीच उनके एक ही शहर में होने के कारण गौरव अपनी माँ रोहिणी से अक्सर मिलने चला जाया करता था। पर गौरव के बड़े होने पर जयेश को पता नहीं क्या सूझा कि अपने परिवार से उसके मिलने-जुलने पर सख्ती बरतने लगा। फिर भी जयेश की अनुपस्थिति में गौरव रोहिणी से मिल लिया करता था।
एक दिन रोहिणी ने ही बड़े कड़े स्वर में गौरव से कहा- ” गौरव ! आज के बाद तुम इस तरह मुझसे मिलने मत आना। अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीयो। तुम अकेले भी तो नहीं हो। तुम्हारे साथ तुम्हारे पापा हैं। ” रोहिणी का सख्त स्वर सुन कर गौरव को बड़ा दुख हुआ- ” मम्मी ! मैं बड़ा लालची हो गया हूँ। एक ही लालच मुझे आप तक खींच लाता है। “
” लालच ! लालच… किस चीज का ? ” रोहिणी के मन में घबराहट और अचरज दोनों ने एक साथ दस्तक दिया।
” आपके प्यार का। ” कहते हुए गौरव पीछे मुड़ा। वह लम्बे कदमों से आगे बढ़ रहा था। रोहिणी उसे नहीं रोक सकी।
— टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला “