कविता

पर्यावरण संरक्षण का नारा

लो जी! फिर से आ गया पर्यावरण दिवस
तो आइए! एक बार फिर इस दिवस की
तनिक औपचारिकता मिलकर निभाइए
अन्य दिवसों की तरह इस दिवस का भी जमकर उपहास उड़ाइए,
वृक्षारोपण करें या बिल्कुल न करें
पर वृक्षारोपण की औपचारिकता जरुर निभाइए।
झूठ मूठ का एक वृक्ष रोपने का नाटक करिए
दस बीस लोग साथ में फोटो जरुर खिंचवाइए,
पर्यावरण विषयक गोष्ठी, संगोष्ठी, कवि सम्मेलन में
पर्यावरण संरक्षण का बेसुरा राग गाइए।
एक वृक्ष तो लगाने से रहे हम आप
पर वृक्षारोपण की जरूरत है, गला फाड़कर बताइए,
विकास की आड़ में हरियाली मिटाइए
ताल तलैया पोखरों, नदी, नालों पर अतिक्रमण करवाइए
जल समस्या का रोना भी आज ही रोइए।
धरती मां का सीना छलनी करने
और हरियाली मिटाने में पीछे न रहिए।
जल, जंगल, जमीन के दुश्मन बनते रहिए
कुछ कीजिए या न कीजिए क्या फर्क पड़ता है?
पर मीडिया, सोशल मीडिया में पर्यावरण दिवस खूब धूमधाम से मनाइए
और कथित पर्यावरण मित्र का सम्मान हथियाइए।
अगला पर्यावरण दिवस मनाने के लिए
हम रहेंगे या नहीं, कुछ पता नहीं,
इस वर्ष के ही पर्यावरण दिवस को यादगार बनाइए
और पर्यावरण दिवस की औपचारिकता
बड़े जोर शोर से निभाइए।
पर्यावरण संरक्षण का कथित अभियान
ए. सी. कमरों में बैठकर चलाइए,
खुद कुछ कीजिए या बिल्कुल भी न कीजिए
सरकार को जी भरकर गरियाइए
और अपनी पीठ शान से थपथपाइए।
अगले वर्ष के पर्यावरण दिवस की रुपरेखा भी
आज ही बनाइए और खूब मुस्कुराइए,
प्रकृति का सीना छलनी करते रहिए
पेड़ काटते रहिए, हरियाली लीलते रहिए
ताल तलैया, नदी नालों, जलाशयों पर अतिक्रमण कर
उनका अस्तित्व मिटाते रहिए
गर्मी, ठंडी, बाढ़, सूखा, भूस्खलन, भूकंप
और ग्लोबल वार्मिंग का रोना रोते रहिए
,प्राकृतिक व्यवस्था पर कुठाराघात करते रहिए
धरती हो या प्रकृति कौन अपनी सगी है
इसका भरपूर दोहन करते रहिए,
वर्ष में केवल एक बार, एक दिन इतना जरूर करिए
बस! पर्यावरण दिवस मनाते रहिए
और बाकी दिन रोना रोते रहिए
फाइलों, मीडिया, सोशल मीडिया में
पर्यावरण संरक्षण करते रहिए
जिंदा रहे तो अगले वर्ष फिर मिलिए
और हमारे साथ पर्यावरण दिवस की
औपचारिक औपचारिकता निभाइए,
पर जरा आज तो अच्छे से मुस्कुराइए
और पर्यावरण संरक्षण का नारा तो लगाइए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921